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Children’s Day 2022 : परिवार की अनहेल्दी आदतें और हाई इनकम बढ़ा रहे हैं बच्चों में मोटापा

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार भारत भर में बच्चों में मोटापा तेजी से बढ़ रहा है। जिससे वे गैर संक्रामक अथवा लाइफस्टाइल डिजीज की चपेट में आ रहे हैं।
Updated On: 18 Nov 2022, 02:37 pm IST
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tips to avoid obesity in kids
मोटापा, डायबिटीज, किडनी डिजीज और कुछ थायरॉयड रोग भी बच्चों और किशोरों में हाई कोलेस्ट्रॉल का कारण बन सकते हैं। चित्र: अडोबी स्टॉक

एक समय में अधिक वजन और ओबेसिटी विकसित देशों के रोग माने जाते थे, परंतु अब यह बीमारी विकासशील देशों में भी तेजी से प्रचलित हो रही है। विशेष रुप से विकासशील देशों के महानगरों में अधिक वजन एवं ओबेसिटी का फैलाव ज्यादा तेजी से हो रहा है। बचपन में ओबेसिटी (childhood obesity) होना कई तरह की बीमारियों का एक संकेत है। जिसके कारण बड़े होने पर गैर-संचारी रोग (Non communicable disease) होने की संभावना रहती है, जिससे समय से पहले मृत्यु भी हो सकती है।

इसके साथ एक बड़ी सामाजिक पूंजी और आर्थिक लागत जुड़ी हुई है। ड्यूक ग्लोबल हेल्थ इंस्टीट्यूट से फ़िंकेलस्टीन व अन्य लोगों ने यह समझाया है कि यदि बचपन में आपको ओबेसिटी है तो सामान्य वजन वाले बच्चे की तुलना में मेडिकल का खर्च लगभग $ 19,000 तक पहुंचने का अनुमान है।

बढ़ रही है मोटे बच्चों की संख्या 

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National family health survey (एनएफएचएस)) के पिछले दो बार के आंकड़ों के अनुसार, भारत में पांच साल से कम उम्र के अधिक वजन वाले बच्चों का अनुपात 2015-16 में 2.1% से बढ़कर 2019-21 में 3.4% हो गया है। सर्वेक्षण में शामिल 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 33 राज्यों में अधिक वजन वाले बच्चों की संख्या में वृद्धि देखी गई है।

बचपन में अधिक वजन वाले शीर्ष पांच राज्य लद्दाख (13.4%), लक्षद्वीप (10.5%), मिजोरम (10%), अरुणाचल प्रदेश (9.7%) और जम्मू-कश्मीर (9.6%) हैं। सर्वेक्षण के अंतिम दो राउंड्स में जिन तीन राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों ने बचपन में अधिक वजन में गिरावट देखी है, वे हैं तमिलनाडु, गोवा, दादर और नगर हवेली तथा दमन और दीव।

sabse zyada mote ho rahe hain laddak ke bachche
सबसे ज्यादा मोटे हो रहे हैं लद्दाख के बच्चे। चित्र : शटरस्टॉक

शहरी बच्चे हैं ज्यादा माेटे 

एनएफएचएस – 5 (2021) के डेटा से पता चलता है कि शहरी क्षेत्रों में बच्चों में अधिक वजन का अनुपात ज्यादा है। ये बच्चे उन परिवारों से हैं, जहां पर उच्च आय है तथा जहां पर माताओं का भी अधिक वजन है। देखा जाए तो यह संख्या बहुत व्यापक नहीं है, परंतु फिर भी बच्चों के एक बड़े समूह में अधिक वजन होना भारत में स्वास्थ्य संबंधी विषय के लिए गंभीर स्थिति बन सकती है।

मुख्य रूप से खाने में अत्यधिक कैलोरी का सेवन परंतु इसके अनुपात में कम कैलोरी की खपत एक तरह का असंतुलन पैदा करता है, जिसके कारण ओबेसिटी होती है। पिछले कुछ सालों में ऐसे खाद्य पदार्थों में वृद्धि हुई है, जिनके अंदर फैट तथा शुगर के रूप में अत्यधिक ऊर्जा मौजूद होती है। साथ ही आलस्यपूर्ण जीवन शैली (Sedentery lifestyle) के कारण लोग निष्क्रिय अवस्था में ज्यादा रहते हैं, जिससे ओबेसिटी का बढ़ना तय है।

परिवहन के बदलते हुए तरीके तथा बढ़ते हुए शहरीकरण के कारण भी ओबेसिटी में वृद्धि देखी जा रही है। आसीन जीवन शैली को अपनाने से तथा संतुलित आहार (बैलेंस डाइट) न लेने के कारण मोटापा (Obesity) में वृद्धि देखी जा रही है और इसके साथ ही कई तरह के पर्यावरणीय तथा सामाजिक परिवर्तनों के कारण भी यह बीमारी अपने पैर पसार रही है।

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प्रदूषण से बचने के लिए आप क्या करते हैं?

देश में विशेष रूप से ऐसी नीतियों की कमी है जिससे इसे नियंत्रण में लाया जा सकता है। जैसे कि स्वास्थ्य, शिक्षा, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति, खाद्य सुरक्षा तथा प्रोसेसिंग, कृषि, परिवहन, शहरी प्लानिंग आदि नीतियों की कमी के कारण बच्चों में ओबेसिटी का प्रसार हो रहा है।

कई बीमारियों का जोखिम बढ़ाता है मोटापा

अन्य बीमारियों की तरह ओबेसिटी भी शरीर तथा दिमाग को कई तरह से प्रभावित करती है जैसे कि भूख ना लगना, तृप्ति में कमी महसूस होना, उपापचय (मेटाबोलिज्म) बिगड़ना, बॉडी फैट बढ़ना तथा और हॉर्मोन संतुलन बिगड़ना आदि। शरीर तथा दिमाग में होने वाले यह परिवर्तन वजन कम होने के बाद भी जल्दी से ठीक नहीं होते हैं, इसमें अत्यधिक समय लग सकता है।

मेंटल हेल्थ भी होती है प्रभावित 

बच्चों एवं युवाओं में ओबेसिटी के कारण हीन भावना देखी जा रही है जिससे उनका मानसिक स्वास्थ्य भी खराब हो सकता है जिसके कारण उन्हें शिक्षा एवं रोजगार के अवसरों को भी गवाना पड़ सकता है और ऐसा आगे की पीढ़ियों में भी हो सकता है। इसलिए यह बहुत जरूरी हो जाता है की ओबेसिटी की रोकथाम के लिए उचित प्रबंधन तथा उपचार के लिए एक सिस्टम आधारित सोच होनी चाहिए और साथ ही व्यापक नीतियां बनाई जानी चाहिए जिससे इस बीमारी के प्रसार को रोका जा सके।

Obesity mental health par bhi bura sar dalti hai
ओबेसिटी मेंटल हेल्थ पर भी बुरा असर डालती है। चित्र शटरस्टॉक।

कुपाेषण भी है एक समस्या 

वर्तमान में हम पर कुपोषण (Malnutrition) का दोहरा बोझ है। जिसके कारण भोजन में पोषण (नुट्रिशन) की कमी तथा अधिक वजन होना या गैर-संचारी रोग आदि साथ में ही देखे जा रहे हैं। कुपोषण जैसी समस्या के लिए कई तरह के कारक जिम्मेदार हैं। इसलिए यह जरूरी है कि हम डब्ल्यूएचओ द्वारा सुझाए गए “डबल ड्यूटी एक्शन” पर कार्य करें।

डबल ड्यूटी एक्शन करेगी बच्चों में मोटापे को कंट्रोल 

डब्ल्यूएचओ द्वारा सुझाए गए “डबल ड्यूटी एक्शन” के जरिए ऐसे प्रोग्राम तथा नीतियां बनाई जा सकती हैं, जिससे अधिक वजन, कुपोषण तथा आहार से संबंधित गैर-संचारी रोग के जोखिम को काफी हद तक कम किया जा सकता है। यह प्रोग्राम हर तरह के कुपोषण को संबोधित करने के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण प्रदान करता है।

1 ईट राइट मूवमेंट 

भारत सरकार मोटापे (ओबेसिटी) की बीमारी से निपटने के लिए कुछ अच्छी पहल लाने पर काम कर रही है जिनमें ईट-राइट मूवमेंट शामिल है जिसके जरिए बच्चों और युवाओं के बीच पोषण को लेकर जागरूकता पैदा की जा रही है।

2 एफओपीएल बनाएगा संवेदनशील 

फ्रंट-ऑफ-पैकेट लेबलिंग (एफओपीएल) के माध्यम से उपभोक्ताओं को संवेदनशील बनाया जा रहा है।

3 बढ़ाए जाने चाहिए खेल के मैदान 

शहरों में बच्चों के लिए उचित खुले स्थान बनाए जा रहे हैं ताकि शारीरिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा सके, ईट राइट मेला का आयोजन किया जा रहा है साथ ही स्कूल परिसर के आसपास किसी भी प्रकार के जंक-फूड की उपलब्धता को हटाया जा रहा है।

हालांकि ये सभी बहुत बड़ी पहल हैं, लेकिन इन्हें बहुत बड़े पैमाने तथा गुणवत्ता पर लागू करने की जरूरत है। प्राइवेट कंपनियां भी इसमें सरकार की सहायता कर रही हैं। वे अपने उत्पादों में पोषण के प्रति संवेदनशीलता लाने की कोशिश कर रही हैं और साथ ही वितरण तथा विज्ञापन के जरिए भी लोगों में जागरुकता फैला रही हैं।

रखना होगा कुछ बातों पर ध्यान 

जंक-फूड बेहद सुविधाजनक होता है और यही मुख्य कारण है जिसके कारण लोग स्वस्थ विकल्पों पर जाने से कतराते हैं। खासतौर पर ऐसे माता-पिता जिन्हें दफ्तर जाना है और वह खानपान के स्वस्थ विकल्प पर समय नहीं दे पाते हैं। जिसके कारण जंक-फूड पर निर्भरता बढ़ती जाती है।
सभी माता-पिता एवं देखभाल करने वाले लोगों को यह समझने की जरूरत है कि अधिक वजन होना तथा ओबेसिटी होना आगे चलकर गंभीर परिणाम देता है।

यह भी पढ़ें – Children’s Day : अपनाएं ये 5 अच्छी आदतें, ताकि आपके बच्चे को न लगे डायबिटीज की नज़र

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लेखक के बारे में
Dr. Antaryami Das
Dr. Antaryami Das

Dr. Antaryami Das is Deputy Director - Health and Nutrition, Save the Children, India

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