यह तो हम सभी जानते हैं कि कैंसर का उपचार करने के लिए कीमोथेरेपी की जाती है। लेकिन क्या आपको यह बात पता है कि कैंसर के सेल्स उपचार के काफी साल बाद भी वापस लौटकर आ सकते हैं। आपको यह सुनकर थोड़ा आश्चर्य हो रहा होगा, लेकिन एक नए अध्ययन में यह पाया गया है कि शरीर में मौजूद कैंसर सेल्स कीमोथेरेपी उपचार से बचने के लिए अपने आप को हाइबरनेट करने की क्षमता रखते हैं।
यह शोध इस बात को भी साबित करता है कि यह बीमारी अक्सर कुछ समय के लिए निष्क्रिय रहने के बाद या फिर उपचार के कई वर्षों तक गायब रहने के बाद वापस लौटकर आने की क्षमता रखती है। मानव कोलोरेक्टल कैंसर सेल्स पर हुई एक प्रीक्लिनिकल रिसर्च से यह पता चला है कि ये एक कम-रखरखाव, “ड्रग-टॉलरेंट परसिस्टेंस” (डीटीपी) स्टेट तक अपने आप को धीमा करने में सक्षम हैं, जो थेरेपी और ट्यूमर रिलेप्स में कुछ विफलताओं को भी समझाने में मदद करता है।
कनाडा के प्रिंसेस मार्गरेट कैंसर सेंटर के शोधकर्ता और सर्जन कैथरीन ओ’ब्रायन के मुताबिक “ट्यूमर एक पूरे ओर्गेनिज़्म की तरह काम करता है। यह धीमी गति से विभाजित अवस्था में जाने में सक्षम है, जो इसे जीवित रहने में मदद करने के लिए एनर्जी कन्जर्व करने में भी मदद करता है।”
उन्होंने आगे बताया, “कठोर वातावरण का सामना करने के लिए जानवरों के रिवर्सिबल और स्लो-डिवाइडिंग स्टेट में प्रवेश करने के कई उदाहरण हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि कैंसर सेल्स ने अपने जिंदा रहने के लिए इसी स्टेट को चुन लिया है।”
अपने अध्ययन के माध्यम से शोधकर्ताओं ने देखा कि जब कीमोथेरेपी दवाओं की मौजूदगी में कोलोरेक्टल कैंसर सेल्स कोर्डीनेशन से एक ही हाइबरनेशन अवस्था में जाते हैं। कोशिकाओं ने विस्तार करना बंद कर दिया, जिसका अर्थ है कि उन्हें जीवित रहने के लिए बहुत ही कम पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।
इन ऑब्जर्वेशन से यह पता चलता है कि सभी कैंसर सेल्स डीटीपी बनने के लिए इक्विपटेंट कैपेसिटी रखती हैं। अर्थात सभी कैंसर सेल्स में जीवित रहने के लिए ऐसा देखा जा सकता है।
अध्ययन के लिए, शोधकर्ताओं ने चूहों पर अपना प्रयोग किया। उन्होंने चूहों के विभिन्न सेटों पर कोलोरेक्टल कैंसर सेल्स को संक्रमित किया। शोधकर्ताओं ने उसके बाद कीमोथेरेपी के साथ चूहों का इलाज किया। उन्होंने आठ सप्ताह की अवधि के दौरान उपचार प्राप्त करने वाले चूहों में ट्यूमर का विकास नहीं देखा। लेकिन जब उपचार बंद हो गया, तो ट्यूमर का विकास फिर से शुरू हुआ।
रीग्रॉन सेल्स उपचार के प्रति संवेदनशील रहे और उनकी वृद्धि रुक गई और उसी तरह से फिर से शुरू हुई, जो डीटीपी स्टेट में प्रवेश करने वाले कैंसर सेल्स के जैसा है।
यह डीटीपी स्टेट एक हाइबरनेशन जैसी स्थिति जैसा दिखता है, जिसे एम्ब्रायोनिक डायपॉज कहा जाता है। जब तक पर्यावरणीय स्थिति अधिक अनुकूल नहीं होती, तब तक एम्ब्रियो एक तरह के इमरजेंसी सर्वाइवल मोड के रूप में वापस आते हैं। कैंसर कोशिकाएं उपचार से सर्वाइवल के लिए यही तरीका लागू करती हैं।
प्रिंसेस मार्गरेट कैंसर सेंटर के ऑन्कोलॉजिस्ट आरोन शिमर के अनुसार “हम वास्तव में कभी नहीं जानते थे कि कैंसर सेल्स हाइबरनेटिंग बीयर की तरह होती हैं। यह अध्ययन हमें यह भी बताता है कि इन सोते हुए भालुओं को कैसे निशाना बनाया जाए। ताकि वे हाइबरनेट न करें और बाद में अप्रत्याशित वापस न आ जाएं।”
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कस्टमाइज़ करेंउन्होंने आगे कहा,“मुझे लगता है कि यह दवा प्रतिरोध का एक महत्वपूर्ण कारण हो सकता है और कुछ ऐसी चीजों को भी बता सकता है जिसकी हमें पहले से अच्छी समझ नहीं थी।”
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