पेट, कमर, जांघों और शरीर के अन्य हिस्सों पर जमा होने वाली चर्बी कब आपको मोटापे की तरफ खींच ले जाती है, आपकाे पता भी नहीं चलता। वास्तव में लॉन्ग सिटिंग और गलत खानपान के चलते शरीर पर फैट जमा होने लगता है। इससे न सिर्फ आपका वजन बढ़ता है, बल्कि यह बढ़ा हुआ वजन आपके आंतरिक अंगों को भी नुकसान पहुंचाता है। लिवर और पेनक्रियाज़ के आसपास भी फैट्स की एक परत बन जाती है। मोटापा अपने साथ हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट डिजीज़ और डायबिटीज़ समेत कई बीमारियों को लेकर आता है। जो आगे चलकर मृत्यु (Obesity hazards) का भी कारण बन सकते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक ओवरवेट और मोटापे को एबनार्मल और एक्सेसिव फैट गेन करने के तौर पर देखा जाता है। इससे स्वस्थ्य संबधी जोखिम बढ़ने का खतरा रहता है। जहां 25 से ज्यादा बॉडी मास इंडेक्स यानि बीएमआई को ओवरवेट की कैटेगरी में रखा जाता है। वहीं 30 से अधिक को मोटापे से ग्रस्त बताया जाता है। वर्ल्ड वाइड हर साल मोटापे से 4 मिलियन से अधिक लोगों की मृत्यु होती है।
नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ हार्ट के मुताबिक टाइप 2 डायबिटीज़ से कोई व्यक्ति उस वक्त ग्रस्त होता है, जब आपके शरीर में ब्लड शुगर लेवल बढने लगता है। रिसर्च में पाया गया है कि टाइप 2 डायबिटीज़ से ग्रस्त हर 10 में से 8 लोग मोटापे का शिकार हैं। ऐसे लेगों में डायबिटीज़ के अलावा हाई बीपी, हार्ट डिजीज़, किडनी की समस्या और आई प्रोब्लम से भी ग्रस्त हो जाते हैं।
अगर आप शुगर की समस्या से दो चार हो रहे है, तो ऐसे में शारीरिक वज़न को 5 से 7 किलो तक कम करना बेहद ज़रूरी है। इसके अलावा नियमित वर्कआउट भी शरीर को फिट रखने में सहायक साबित होता है।
उम्र बढ़ने के साथ शरीर में फैट जमा होने लगते हैं। बढ़ रहे मोटापे के चलते कई शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। मोटापा बढ़ने से शरीर के अंगों में दर्दए स्टिफनैस और ऐंठन महसूस होने लगती है। कमर, घुटनों, पैरों और बाजूओं में हल्के दर्द का एहसास होता है।
इसके अलावा ज्यादा देर तक खड़े रहने से रीढ़ की हड्डी में दर्द का अनुभव होता है। हांलाकि टेस्ट करवाने पर कई बार कोई बड़ी समस्या नज़र नहीं आती है। मोटापे में बढ़ोतरी होने से शरीर का वज़न टांगों और घुटनों पर आने लगता है, जो दर्द का कारण साबित होता है। इसके लिए शरीर में लचीलापन बढ़ाना आवश्यक है।
ओवरवेट होना प्रेगनेंसी में भी कई परेशानियों का कारण बन सकता है। वे महिलाएं, जो मोटापे की शिकार है और गर्भावस्था से गुज़र रही है। उनमें गेस्टेशनल डायबिटीज़ का जोखिम बढ़ जाता है। इसके अलावा प्रिक्लेम्प्शिया, जो गर्भावस्था के दौरान हाई ब्लड प्रेशर का कारण बनता है। इसका प्रभाव मां और बच्चे दोनों पर ही दिखने लगता है। ऐसे में गर्भवती महिला को सी सेक्शन डिलीवरी का ही सुझाव दिया जाता है। वहीं डिलीवरी के बाद भी इस समस्या को ठीक होने में वक्त लगता है।
हार्वर्ड एजुकेशन के मुताबिक धमनियों में क्लॉटिंग के चलते स्ट्रोक का जोखिम बना रहता है। और कोरोनरी धमनी रोग कई समान रोग प्रक्रियाओं और जोखिम कारकों को साझा करते हैं। 2.3 मिलियन प्रतिभागियों के साथ किए गए एक अध्ययन के मुताबिक अतिरिक्त वजन होने पर स्ट्रोक का खतरा 22 फीसदी तक बढ़ जाता है। वहीं मोटापे के चलते यही जोखिम 64 प्रतिशत तक पहुंच जाता है।
हार्वर्ड एजुकेशन के मुताबिक मोटापा हमारी उम्र को कम करने का काम करता है। वजन घटाने से मोटापे से संबंधित कुछ समस्याओं को कम कर सकते हैं। वे लोग जो मोटापे के शिकार हैं। अगर वे 5 से 10 प्रतिशत वेट लूज करते हैं, उससे वे कई स्वास्थ्य जोखिमों से बच सकते हैं। इसके अलावा हेल्दी लाइफ जी सकते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक अधिक वजन और मोटापे के जोखिम को कम करने के लिए कैलोरी कंसप्शन और शुगर इनटेक पर रोक लगाने की आवश्यकता है।
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कस्टमाइज़ करेंकैलोरी को कम करके डेली डाइट में मौसमी फल, सब्जियां, लैग्यूम्स, साबुत अनाज और नट्स को शामिल करना ज़रूरी है। जो हमारे शारीरिक विकास के साथ मानसिक विकास में सहायक है। साथ ही मोटापे को कम करने में मददगार साबित होगी।
एक्सरसाइज़ को रूटीन का हिस्सा बनाएं। इसके लिए फिजिकली एक्टिव होना ज़रूरी है। जहां बच्चों को सप्ताह में 60 मिनट वर्कआउट के लिए निकालने चाहिए। वहीं वयस्कों को वीक में 150 मिनट खुद को फिटनेस के लिए निकालने ज़रूरी है। में संलग्न होना शामिल है।
वहीं बच्चों को 6 महीने तक करवाया जाने वाले ब्रैस्ट फीडिंग शिशुओं को मोटापे से बचाने का काम करता है।
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