कभी आपने अपने आसपास ऐसे बच्चे देखे होंगे जो मानसिक और शारीरिक रूप से उतने बेहतर नहीं होते, जितना अन्य बच्चे। ऐसे बच्चे वो होते हैं जो ऑटिज्म डिसॉर्डर की चपेट में आ जाते हैं। भारत में लगभग एक करोड़ ऐसे बच्चे हैं, जो इस डिसॉर्डर की चपेट में हैं। ऐसे बच्चों के प्रति सौहार्दपूर्ण व्यवहार और लोगों को जागरुक करने के उद्देश्य से हर साल 18 जून को ऑटिस्टिक प्राइड डे (Autistic Pride Day) के तौर पर मनाया जाता है।
ऑटिज्म एक ऐसी दिमागी बीमारी है, जिससे ग्रस्त लोगों में व्यवहार से लेकर कई तरह की परेशानियां होती हैं। ये एक ऐसा डिसॉर्डर है, जिससे बच्चे में आत्म विश्वास की कमी हो जाती है और बच्चा हमेशा डरा सहमा सा महसूस करता है।
जैसे आपने बर्फी फिल्म में प्रियंका चौपड़ा को देखा होगा।ऑटिज्म जन्म के समय या उसके शीघ्र बाद शुरू होनेवाली जीवन-भर की विकलांगता है। ये व्यक्ति के सीखने के ढंग और उसके काम करने कि स्थिति पर प्रभाव डालती है।
मानसिक अक्षमता बहुत सारी समस्याओं का कारण बनती है। खासतौर से ऑटिज्म में बच्चे उन छोटी-छोटी चीजों को सीखने में भी चुनौतियों का सामना करते हैं, जो जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं हैं। इनकी निर्भरता कभी-कभी परिवार और इनके आसपास के लोगों में खीझ पैदा करती है। परंतु प्रकति का सिद्धांत है कि हर व्यक्ति को सम्मान पूर्वक जीने का अधिकार है। यही सबसे जरूरी मानवाधिकार भी है। इन बच्चों के सम्मान के प्रति शेष दुनिया को जागरुक करने के लिए हर वर्ष 18 जून को ऑटिस्टिक प्राइड डे मनाया जाता है।
वहीं हर साल इसके लिए एक थीम निश्चित की जाती है। महामारी ने जब सभी के लिए चुनौतियां बढ़ाई हैं, वहीं ऑटिज्म से ग्रसित बच्चों के लिए मुश्किलें और बढ़ीं हैं। इसलिए इस वर्ष की थीम Inclusion in the Workplace: Challenges and Opportunities in a Post-Pandemic World’ रखी गई है।
सेंटर ऑफ डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार, वर्तमान समय में संयुक्त राज्य अमेरिका में हर 59 बच्चों में से अनुमानित 1 बच्चा ऑटिज्म से पीड़ित है। वहीं विशेषज्ञों की मानें तो भारत में 100 में से 1 बच्चा इसका शिकार है।
ऑटिज्म के शुरुआती लक्षण 1-3 साल के बच्चों में नजर आ जाते हैं। जो कुछ इस प्रकार हो सकते हैं जैसे-
• बच्चे का बहुत कम चीज़ों में रूचि लेना और एक ही तरह के काम को बार-बार करना।
• दूसरे बच्चों के मुक़ाबले सीखने और खेल-कूद में कम भाग लेना।
• भाषा और बातचीत करने की कला के विकास में भिन्नता।
• तेज़ ध्वनियों से बच कर रहना या इधर-उधर ज़्यादा चलना-फिरना।
ऑटिज्म से ग्रस्त बच्चों में कुछ लक्षण समान और कुछ भिन्न भी हो सकते हैं। जिस कारण इसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम भी कहते हैं।
इस पर अभी तक कोई सही जानकारी उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन इसके कई कारण माने गए हैं, जिससे इस बीमारी के होने का पता लगाया जा सके।
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कस्टमाइज़ करेंअभी तक इसके लिए ऐसी कोई दवा नहीं बनी है, जो इसका उपचार कर सकें। परंतु इसके लक्षणों का उपचार किया जा सकता है। जैसे नींद न आना, भूख न लगना। इसमें बच्चे को व्यवहारिक थेरेपी भी दी जा सकती है, जिससे उसके लिए अपने दैनिक कार्यों को सीखना आसान हो सके। बस जरूरत है बहुत सारे प्यार और धैर्य की। ताकि परिवार के अन्य सदस्यों की मदद और सहयोग से उनके जीवन को थोड़ा और सम्मानजनक बनाया जा सके।
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