कोविड – 19 नें हम सभी के जीवन को उलट कर रख दिया है। एक तरफ बीमारी की मार और दूसरी तरफ लॉकडाउन की कैद में, हम सभी जीवन जीना जैसे भूल ही गए थे। अब जाकर सभी की जिंदगी थोड़ी पटरी पर आई है। मगर कोविड – 19 ने अभी भी हमारा पीछा नहीं छोड़ा है। कोविड ने हमारे मन मस्तिष्क को इतना प्रभावित किया है कि हम भूल गए हैं कि नॉर्मल लाइफ क्या होती है। अब जब हम इस न्यू नॉर्मल के संग सामंजस्य बैठाने की कोशिश कर रहे हैं, तो कोविड – 19 के साइड एफेक्ट्स हमें इस बीमारी से उबरने नहीं दे रहे हैं। स्वास्थ्य जगत की अग्रणी पत्रिका लैंसेट के अध्ययन में यह सामने आया है कि कोविड-19 से रिकवरी के दो साल बाद तक भी मरीजों में न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर (Neurological disorder after Covid – 19) देखे जा सकते हैं।
जी हां… हम सभी जानते हैं कि लॉन्ग कोविड के साइड इफेक्ट्स कितने घातक साबित हो सकते हैं। व्यक्ति शायद इनसे कभी उबर ही न पाए। ऐसे में हाल ही में एक रिसर्च सामने आई है जो यह दावा करती है कि कोविड – 19 होने के 2 साल बाद भी व्यक्ति मनोभ्रंश और दौरे जैसी न्यूरोलॉजिकल और मनोरोग स्थितियों के अधिक जोखिम में रहता है।
द लैंसेट साइकियाट्री जर्नल में प्रकाशित यह अध्ययन कुल 1.25 मिलियन से अधिक मरीजों के हेल्थ रिकॉर्ड की जांच करने के बाद तैयार किया गया है। अध्ययन में बताया गया है कि संक्रमण के बाद पहले छह महीनों में कोविड – 19 से रिकवर हुये लोगों को कई न्यूरोलॉजिकल और मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों का खतरा बढ़ जाता है। क्योंकि जो लोग सांस संबंधी समस्याओं से ग्रसित हैं उनमें अवसाद और एंग्जाइटी के लक्षण देर से जाते हैं।
अध्ययन के प्रमुख लेखक हैरिसन ने कहा, “परिणामों का रोगियों और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है, क्योंकि इससे पता चलता है कि कोविड -19 संक्रमण से जुड़ी न्यूरोलॉजिकल स्थितियों के नए मामले महामारी के थमने के बाद काफी समय तक दिखाई दे सकते हैं।”
18-64 आयु वर्ग के वयस्क जिनके पास दो साल पहले तक कोविड -19 था, उनमें संज्ञानात्मक घाटे, या ‘ब्रेन फॉग’ और मांसपेशियों की बीमारी का जोखिम उन लोगों की तुलना में अधिक था, जिन्हें दो साल पहले तक अन्य श्वसन संक्रमण थे।
65 वर्ष और उससे अधिक आयु के वयस्कों में, उन लोगों की तुलना में ‘ब्रेन फॉग’, मनोभ्रंश और मानसिक विकार की घटना अधिक थी, जिन्हें पहले एक अलग श्वसन संक्रमण था।
वयस्कों की तुलना में बच्चों में कोविड -19 के बाद न्यूरोलॉजिकल और मनोरोग विकारों की संभावना कम थी। उन्हें अन्य श्वसन संक्रमण वाले बच्चों की तुलना में चिंता या अवसाद का अधिक जोखिम नहीं था।
जो लोग कोविड – 19 के डेल्टा वेरिएंट से संक्रमित थे उनमें चिंता, संज्ञानात्मक घाटे, मिर्गी या दौरे, और इस्केमिक स्ट्रोक का उच्च जोखिम था। साथ ही, जो ओमिक्रॉन वेरिएंट की चपेट में आए उनमें मनोभ्रंश का जोखिम कम पाया गया।
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