कोरोना से ठीक हो चुके मरीज के शरीर में एंटीबॉडी जल्दी नष्ट नहीं होतीं और दोबारा संक्रमण से भी बचाती हैं। न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में छपे अध्ययन में यह बात सामने आई है। गौरतलब है कि मरीज के शरीर में संक्रमण के ठीक हो जाने के बाद एंटीबॉडी प्रोटीन विकसित हो जाते हैं, जो शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को उस वायरस के खिलाफ लड़ने के लिए मजबूती देते हैं।
आइसलैंड स्थित डीकोड जेनेटिक्स ने कई विश्वविद्यालयों व मेडिकल सेंटरों और अस्पतालों के साथ मिलकर यह अध्ययन किया। शोध दल ने पाया कि मरीज में कोरोना की पुष्टि होने के चार महीने तक एंटीबॉडी बनी रहती हैं और फिर धीरे-धीरे नष्ट होना शुरू होती हैं। वैज्ञानिकों ने 1,215 कोरोना संक्रमित मरीजों के अध्ययन में पाया कि चार महीने तक उनके शरीर में विकसित एंटीबॉडीज का स्तर नहीं घटा।
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि मरीज में कोरोना की पुष्टि के दो महीने बाद उनके शरीर में एंटीवायरस एंटीबॉडीज का स्तर बढ़ गया। यही स्तर कुल चार माह तक बना रहा।
वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि एंटीबॉडीज के स्तर का संबंध मरीज में संक्रमण के गंभीर स्तर और उसके अस्पताल में भर्ती होने से भी जुड़ा है।
उन्होंने पाया कि कोरोना के प्रमुख लक्षणों वाला मरीज, जिसे तेज बुखार, खांसी और भूख न लगने की समस्या महसूस होती है, उसके शरीर में ज्यादा एंटीबॉडीज बनती हैं।
किंग्स कॉलेज लंदन ने 96 मरीजों पर जुलाई में अध्ययन करके दावा किया था कि कोरोना की एंटीबॉडी बहुत तेजी से नष्ट होती है। शोध में यह भी कहा गया कि एंटीबॉडी अधिकतम तीन महीने ही बनी रहती है और दोबारा संक्रमण के खतरे से मरीज को सुरक्षा नहीं देती।
शोधार्थी का कहना है कि परिणाम उम्मीद जगाने वाले हैं। कोरोना एंटीबॉडी के शरीर में चार महीने के बने रहने से सबसे ज्यादा लाभ कोरोना वैक्सीन में होगा।
जब वैक्सीन बनकर लोगों के लिए उपलब्ध हो जाएगी तो लोगों में इस एंटीबॉडी का प्रभाव लंबे समय तक रहेगा।
ध्यान रखें
कोविड-19 पर हर रोज नए शोध हो रहे हैं। इसिलिए यह जरूरी है कि आप अब भी सुरक्षा के उपाय अपनाती रहें।
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