अपनी मम्मी, मासियों, चाचियों और बहनों से आपको ये ट्रेनिंग मिल चुकी होगी कि गप्पों में तनाव को कैसे उड़ाया जाए। अच्छी बात ये कि हमारे इस पीढ़ियों पुराने हुनर का पता अब वैज्ञानिकों को भी चल गया है! गहन शोध के बात वैज्ञानिकों के एक समूह ने यह पता लगाया कि महिलाएं किसी अजनबी यानी डॉक्टर या मनोवैज्ञानिक से सलाह करने की बजाए अपनी सहेलियों पर ज्यादा भरोसा करती हैं। और सहेलियां भी उतनी ही संजीदगी से उन्हें तनाव से बाहर ले आती हैं।
गर्ल्स अपनी सहेलियों को जीवन भर अपने साथ रखें, क्योंकि उनसे बात करके न सिर्फ आप अपना मन हल्का कर सकती हैं, बल्कि आपके तनाव का स्तर भी कम हो सकता है। यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनोइस अर्बाना-शैंपेन में बेकमैन इंस्टीट्यूट फॉर एडवांस साइंस एंड टेक्नोलॉजी (Beckman Institute for Advanced Science and Technology at the University of Illinois Urbana-Champaign) में हुए एक अध्ययन में सामने आया है कि महिला मित्रों के साथ बातचीत करने से जीवन भर महिलाओं के लिए तनाव का स्तर कम हो सकता है।
जर्नल ऑफ वीमेन एंड एजिंग में प्रकाशित हुए इस अध्ययन का शीर्षक था (What are friends for?) यानी ”दोस्त किस लिए हैं’। हम सभी इस बात से अवगत हैं कि व्यापार और आनंद के लिए मनुष्य निरंतर संचार करता रहता है। सामाजीकरण की यह प्रवृत्ति मनुष्य के साथ आजीवन रहती है। यह किशोरों और वयस्कों के जीवन में समान रूप से प्रमुख है।
इस अध्ययन का उद्देश्य यह पता लगाना था कि विभिन्न आयु वर्ग के लोग किस तरह से संवाद करते हैं, और इसमें ‘दोस्ती’ क्या भूमिका निभाती है।
बेकमैन इंस्टीट्यूट के पूर्व पोस्टडॉक्टरल शोधकर्ताओं मिशेल रोड्रिग्स और सी ऑन यून के नेतृत्व में, एक टीम ने मूल्यांकन किया कि कैसे वार्ताकारों की उम्र और परिवार बातचीत को प्रभावित करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप तनाव प्रतिक्रियाओं की समीक्षा की जा सकती है।
दो हाईपोथीसिस इस महिला-केंद्रित अध्ययन की नींव बनाती हैं। सबसे पहले, उनकी प्रवृत्ति और दोस्ती की हाईपोथीसिस।
वर्तमान में मार्क्वेट विश्वविद्यालय में सामाजिक और सांस्कृतिक विज्ञान विभाग में सहायक प्रोफेसर, रोड्रिग्स ने कहा कि “महिलाओं ने तनाव के जवाब में एक वैकल्पिक तंत्र विकसित किया है, जिसमें अपनी सहेलियों से बात करना शामिल है।”
शोधकर्ताओं की टीम ने सामाजिक स्तर पर विश्लेषण किया कि जैसे – जैसे मनुष्य उम्र में बढ़ते हैं, ठीक उसी तरह उनका दोस्ती का दायरा और दोस्त भी बदलते हैं।
अध्ययन में अलग उम्र के अलग- अलग लोगों को कुछ लोगों से बात करवाई, जिसमें से कुछ उनके परिचित थे और कुछ अपरिचित। कुछ समय तक बातचीत करने के बाद निष्कर्ष यह निकला कि, लोग अपने दोस्तों से बात करने में ज्यादा सहज और खुश थे, बजाय उन लोगों से बात करने में जिन्हें वे जानते नहीं हैं।
रोड्रिग्स कहते हैं कि – “’जिन लोगों की उम्र ज्यादा थी वे फिर भी अजनबियों से बातचीत करने में सक्षम थे, क्योंकि वे उनके बैकग्राउंड को ज्यादा बेहतर तरीके से समझ पाए। वहीं दूसरी ओर कम उम्र के लोग यानी किशोर अजनबियों से बात करने में हिचकिचाते हुए दिखाई दिए।”
“हालांकि बड़े वयस्क उन लोगों के साथ अधिक समय बिताना चुनते हैं, जो उनके लिए मायने रखते हैं। यह स्पष्ट है कि उनके पास अपरिचित लोगों के साथ बातचीत करने के लिए सामाजिक कौशल है।”
इसी अध्ययन में रॉड्रिक्स की टीम ने पूरी परीक्षण प्रक्रिया में प्रतिभागियों के तनाव के स्तर को मापने और तुलना करने के लिए कोर्टिसोल को भी मापा।
दोनों ही आयु वर्ग के लोगों में अपरिचित लोगों से बात करते हुए तनाव का स्तर कम निकला, खासतौर से महिलाओं में। जिससे यह साबित हो जाता है कि दुःख में किसी परिचित जैसे दोस्त या परिवार वालों से बात करना आपको अच्छा महसूस करवाता है।
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