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काम का तनाव महिलाओं में बढ़ा रहा है यौन स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, जानिए क्या कहता है सर्वे 

कोरोनावायरस महामारी के बाद से महिलाओं के रोजगार में नौ फीसदी की गिरावट आई है। इसका असर न केवल उनके मानसिक स्वास्थ्य, बल्कि यौन स्वास्थ्य पर भी पड़ने लगा है। 
वर्कफोर्स भी स्ट्रेस को बढ़ावा देता है। चित्र:शटरस्टॉक
शालिनी पाण्डेय Published: 27 Sep 2022, 20:11 pm IST
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क्या फैमिली प्लान करने के बारे में सोचते ही आपको आपके ऑफिस के टारगेट, इन्क्रीमेंट और प्रमोशन की चिंता सताने लगती है? क्या प्रोफेशनल फ्रंट पर पिछड़ने के डर से आप अभी तक बेबी प्लान करने या शादी करने की हिम्मत नहीं जुटा पाईं हैं? या क्या बहुत कोशिश के बावजूद आप बेबी प्लान नहीं कर पा रहीं हैं? तो इन समस्याओं से जूझने वाली आप अकेली नहीं हैं। आप जैसी लाखों महिलाएं भारत में प्रोफेशनल बर्डन के कारण मानसिक और यौन स्वास्थ्य (Sexual health of women in India) संबंधी समस्याओं का सामना कर रहीं हैं। 

कोरोनावायरस महामारी के बाद कम हुए हैं महिलाओं के लिए रोजगार 

विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार , COVID-19 के प्रकोप के बाद से, 2022 में भारत में महिला रोजगार में 9% की गिरावट आई है। महिलाओं के लिए तनाव बढ़ाने वाले कई कारणों में से एक यह भी है।

तनाव बन सकता है इनफर्टिलिटी का कारण। चित्र: शटरस्टॉक

जैसे-जैसे काम का तनाव बढ़ता है, महिलाओं के यौन स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव गंभीर रूप से बढ़ जाता है। पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS), एंडोमेट्रियोसिस जैसे विकार कामकाजी महिलाओं में बांझपन का कारण बनते हैं।

हाल के केंद्रीय बजट के आंकड़ों के अनुसार, 51.44% महिलाओं में रोजगार की योग्यता है। जबकि कॉरपोरेट्स मातृत्व कवरेज, पीरियड लीव्स आदि में वृद्धि के साथ महिला रोजगार को बढ़ावा देने और प्रोत्साहित करने के लिए कई उपाय अपना रहे हैं।

कामकाजी महिलाओं को हेल्थ मैनेज करने में होती है दिक्कत

एनसीबीआई ने 2018 में  “कामकाजी महिलाओं के प्रजनन और यौन स्वास्थ्य” पर एक रिपोर्ट जारी की है। जिसमें कंपनियों से महिलाओं के स्वास्थ्य के अनकहे पहलुओं पर ध्यान देने का आग्रह किया गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार सर्वेक्षण में शामिल 52% महिलाओं का कहना है कि वे काम के साथ अपनी हेल्थ मैनेज करने के लिए संघर्ष करती हैं। 

तनाव सेक्सुअल हेल्थ के लिए अच्‍छे नहीं होते। चित्र: शटरस्‍टॉक

भारत में पांच में से एक महिला यानी 20% को पीसीओएस है। यह महिलाओं में बांझपन का एक प्रमुख कारण है और ओवुलेटरी इनफर्टिलिटी के 80% मामलों में यही कारण है।

इनफर्टिलिटी के लिए आईवीएफ भी है बेहद खर्चीला उपचार

आईवीएफ उपचार पूरे देश में महंगा है और दुर्भाग्य से कॉरपोरेट्स की समूह बीमा पॉलिसी के तहत कवर नहीं किया गया है। जिससे कार्यबल में महिलाओं के बीच तनाव और परेशानी बढ़ रही है। आईवीएफ उपचार की लागत लगभग 1.5 लाख रुपये, लैप्रोस्कोपी लगभग 75,000 रुपये और हिस्टरेक्टॉमी की लागत 1.32 लाख रुपये से 2.75 लाख रुपये तक है। भारत में ज्यादातर कंपनियां ऐसा करती हैं। 

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शालिनी पाण्डेय

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