ब्रेन से जुड़े सेंट्रल नर्वस सिस्टम से संबंधी कई विकार हो सकते हैं। मनोरोग संबंधी विकार, न्यूरोडीजेनेरेशन, क्रोनिक पेन, ब्रेन ट्यूमर आदि जैसे रोग इसी से जुड़े होते हैं। यहां तक कि ब्रेन स्ट्रोक भी सेंट्रल नर्वस सिस्टम संबंधी विकार हैं। चिकित्सक मानते हैं कि पेप्टाइड फार्मास्यूटिकल्स ही इन विकारों में लाभ पहुंचाते हैं। हाल में हुई एक स्टडी बताती है कि नाक पर दवाओं का छिड़काव करने से ब्रेन स्ट्रोक को ठीक करने में मदद (nasal spray effect on brain stroke) मिल सकती है।
ज्यूरिख में स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और न्यूकैसल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने ब्रेन स्ट्रोक से प्रभावित चूहों पर यह स्टडी की। टीम ने सबसे पहले चूहों के मस्तिष्क के कुछ हिस्सों में रक्त प्रवाह को रोक दिया। इसके बाद स्ट्रोक के प्रभावों की जांच की। कुछ चूहों को दो सप्ताह तक प्रतिदिन एक बार एंटीबॉडी नेज़ल स्प्रे दिया गया।
यह पाया गया कि स्ट्रोक के चार सप्ताह बाद उनमें लगभग 60 प्रतिशत तक सुधार देखा गया। वहीं प्लेसीबो उपचार लेने वालों में चूहों में यह आंकड़ा लगभग 30 प्रतिशत था। शोधकर्ताओं के अनुसार, नाक के ऊपर स्प्रे करने वाली दवाएं ब्रेन स्ट्रोक के प्रभावों का मुकाबला करने में सक्षम हो सकती हैं। उन्हें नाक के ऊपर स्प्रे करके मस्तिष्क तक पहुंचाया जा सकता है।
नेजल स्प्रे एरोसोल के रूप में होता है। इसमें थेराप्यूटिक पेप्टाइड्स कंपाउंड मौजूद होते हैं। इसकी डिलीवरी नाक से मस्तिष्क तक हो पाती है।
शोधकर्ताओं की टीम ने चूहे के दिमाग की जांच की। उन्होंने पाया कि इलाज किए गए चूहों में अधिक नए नर्व फाइबर देखे गये। यहां एंटीबॉडी लेवल स्ट्रोक के कारण हुए जख्म की मरम्मत में प्रभावी है। इससे पता चलता है कि मस्तिष्क के भीतर रीजेनरेटिव पॉवर है।
चूहों की नाक पर स्प्रे किए गए एंटीबॉडी अणुओं ने मस्तिष्क में स्ट्रोक जैसी क्षति की मरम्मत की। ऐसा इसलिए हो सकता है, क्योंकि दवाएं तंत्रिका कोशिकाओं के माध्यम से यात्रा करती हैं।
पिछले अध्ययनों के अनुसार, कुछ दवाएं गंध का पता लगाने वाली नर्व सेल की यात्रा करती है। यह नाक के माध्यम से मस्तिष्क तक पहुंचने में सक्षम हो सकती हैं। क्योंकि इनमें लंबे फाइबर होते हैं, जो नाक के मार्ग से मस्तिष्क तक फैलते हैं। दवाएं जो स्ट्रोक के प्रभावों का मुकाबला करती हैं, उन्हें नाक के ऊपर स्प्रे करने से मस्तिष्क तक पहुंचाया जा सकता है।
दवा के बड़े अणुओं को ब्रेन तक पहुंचाना लंबे समय से एक प्रमुख चिकित्सा चुनौती रही है। अधिकांश कंपाउंड बड़ी मात्रा में मस्तिष्क तक नहीं पहुंच सकते हैं। क्योंकि मस्तिष्क तक शुद्ध रक्त पहुंचाने वाली वाहिकाओं की दीवारें बहुत अधिक अभेद्य होती हैं। जो रक्त-मस्तिष्क बाधा के रूप में जानी जाती हैं।
शोधकर्ताओं ने नाक पर डाले गये स्प्रे से तैयार एंटीबॉडी का परीक्षण किया। यह ब्रेन में नोगो-ए नामक कंपाउंड को अवरुद्ध करता है। यह आम तौर पर ब्रेन सेल के विकास को रोकता है।
इस अध्ययन से यह साबित नहीं हो पाया कि एंटीबॉडी नसों की यात्रा करके मस्तिष्क तक कैसे पहुंच गए। क्योंकि वे नाक से ब्लड स्ट्रीम में अवशोषित हो सकते थे। इनकी बहुत कम मात्रा मस्तिष्क तक पहुंच सकती थी।
पूर्व में किये गये शोध बताते हैं कि जब नेजल स्प्रे का नाक पर छिडकाव किया जाता है। तो इंसुलिन संभवतः स्मृति में सुधार करने में मदद कर सकता है। शुरुआती अल्जाइमर रोग या हल्के संज्ञानात्मक हानि वाले लोगों में यह संज्ञानात्मक कार्य को बनाए रखने में मदद कर सकता है। हालांकि अध्ययन के परिणाम पूरी तरह से इस बात पर जोर नहीं देते हैं। बाद के कुछ परीक्षणों ने नेजल स्प्रे के मेमोरी पर प्रभाव के नकारात्मक परिणाम दिखाए।
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