इन दिनों खराब लाइफस्टाइल के कारण कई समस्याएं हो रही हैं। हार्ट डिजीज, ब्लड शुगर, वेट गेन आदि जैसी स्वास्थ्य समस्याएं गलत लाइफस्टाइल और खराब खानपान के कारण होती हैं। वेट गेन के कारण ही हमें ज्वाइंट्स पेन होने लगते हैं। यह दर्द इतना अधिक हो जाता है कि हमें घुटना, कमर, एंकल आदि को मोड़ना या खड़े होना भी मुश्किल हो जाता है। इन ज्वाइंट्स पेन के कारण हमें अर्थराइटिस की समस्या हो जाती है। फिजियोथेरेपी भी अर्थराइटिस के दर्द से उबरने में आपकी मदद कर सकती (Physiotherapy prevent osteoarthritis) है। जानना चाहती हैं कैसे, तो एक्सपर्ट के बताए इन सुझावों को ध्यान से पढ़ें।
क्या है अर्थराइटिस और कब हमें फिजियोथेरेपिस्ट की मदद लेनी चाहिए, इसके लिए हमने बात की इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, बीएचयू में फिजियोथेरेपी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. शुभ्रेन्दु शेखर पांडे से ।
1 ऑस्टियो अर्थराइटिस
2 रयूमेटॉयड अर्थराइटिस
3 गाउट
शुभ्रेन्दु बताते हैं, ‘ऑस्टियोअर्थराइटिस गठिया का सबसे आम रूप है, जिसमें जोड़ों में सूजन आ जाती है और दर्द होने लगता है। बहुत साल पहले तक व्यक्ति को 60-65 वर्ष में यह समस्या होती थी। पर इन दिनों लाइफस्टाइल मॉडिफिकेशन के कारण यह समस्या 40 वर्ष या उससे भी पहले होने लगह है।’
इसमें हड्डियों के सिरों पर मौजूद सुरक्षात्मक कार्टिलेज टूट-फूट के कारण खराब हो जाता है। इससे रीढ़, कूल्हों, घुटनों और हाथों के ज्वाइंट्स प्रभावित हो जाते हैं।
शुभ्रेन्दु बताते हैं, ऐसे लोग जो ज्वाइंट्स पर एक्सेस वर्कलोड डालते हैं, उन्हें यह समस्या अधिक परेशान करती है।
लंबे समय तक पालथी मारकर बैठने वाले, बहुत अधिक कूदने-दौड़ने, जॉगिंग करने वाले खासकर स्पोर्ट पर्सन इस श्रेणी में आते हैं। साथ ही मोटापे के शिकार लोग, जिनका वजन जोड़ों पर अधिक पड़ता है, उन्हें अर्थराइटिस की समस्या अधिक होती है।
अपनी रुचि के विषय चुनें और फ़ीड कस्टमाइज़ करें
कस्टमाइज़ करेंशुभ्रेन्दु जोर देते हैं कि ऑस्टियाेअर्थराइटिस हो जाने पर नहीं, बल्कि शुरुआती लक्षण दिखने पर ही फिजियोथेरेपी शुरू कर देनी चाहिए। यदि शुरुआती दौर में फिजियोथेरेपिस्ट द्वारा बताई गई एक्सरसाइज का पालन किया जाए, तो इससे कुछ हद तक बचाव (Physiotherapy prevent osteoarthritis) किया जा सकता है।
ऑस्टियोअर्थराइटिस के कारण ज्वाइंट सख्त हो जाते हैं। फिजियोथेरेपी से ज्वाइंट को मोड़ने और सीधा करने की क्षमता में सुधार हो सकता है। ज्वाइंट फंक्शन में भी सुधार हो पाता है।
ऑस्टियोअर्थराइटिस के कारण ज्वाइंट का प्रोटेक्टिव कार्टिलेज क्षतिग्रस्त हो जाता है। इससे ज्वाइंट बोंस के बीच दर्दनाक फ्रिक्शन हो सकता है। ज्वाइंट को सहारा देने वाली आसपास की मांसपेशियों को मजबूत करके इस फ्रिक्शन को कम किया जा सकता है। फिजियोथेरेपी के माध्यम से इस समस्या की पहचान कर जोड़ों में ताकत और स्टेबिलिटी लाने में मदद मिल सकती है।
ऑस्टियोअर्थराइटिस वाले व्यक्तियों में अक्सर मांसपेशियों की कमजोरी, मूवमेंट में कमी, ज्वाइंट की कार्यप्रणाली के कारण संतुलन बिगड़ जाता है। यहां पर भी फिजियोथेरेपी से पेन रिलीफ हो पाती है और ऑस्टियोअर्थराइटिस से पीड़ित लोग ज्वॉइंट मूवमेंट और वॉकिंग को इंप्रूव कर पाते हैं।
बढ़िया पोश्चर ज्वाइंट स्ट्रेस को को कम कर सकता है। फिजियोथेरेपी के माध्यम से पोश्चर को समायोजित करने, बैठने, खड़े होने और चलने पर ज्वाइंट पर कम स्ट्रेस डालने के तरीके के बारे में जानकारी मिल सकती है।
यदि शुरुआत में ही फिजियोथेरेपी की मदद ले ली जाए, तो नी रिप्लेसमेंट की जरूरत ही न पड़े।