सुनने की क्षमता का कम होना बढ़ा सकता है डिमेंशिया का खतरा, जानिए इस बारे में क्या कहती है रिसर्च

बढ़ती उम्र के साथ सुनने की क्षमता का कम हाे जाना भारतीय बुजुर्गों में आम है। यूएस में की गई एक स्टडी बताती है कि इसके कारण आइसोलेशन में जाने वाले बुजुर्गों में डिमेंशिया का जोखिम भी बढ़ सकता है।
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रिसर्च यह बताती है कि हियरिंग लॉस डिमेंशिया के जोखिम को बढ़ा सकती है (dementia risk causes)। चित्र : अडोबी स्टॉक
ज्योति सोही Published: 24 Nov 2023, 06:00 pm IST
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याददाश्त कमज़ोर होना, चीजें रखकर भूल जाना और अकेले ज्यादा वक्त गुज़ारना, बढ़ती उम्र में दिखाई देने वाले ये लक्षण डिमेंशिया के संकेत हो सकते हैं। मगर क्या आप जानते हैं कि सुनने की क्षमता कम होना भी डिमेंशिया के खतरे को बढ़ा सकता है। उम्र के साथ अकसर लोगों में देखने के साथ-साथ सुनने की क्षमता भी प्रभावित होने लगती है। हाल ही आई एक रिसर्च यह बताती है कि हियरिंग लॉस डिमेंशिया के जोखिम को बढ़ा सकती है (dementia risk causes)

क्या है हियरिंग लॉस और डिमेंशिया के जोखिम पर रिसर्च

अमेरिकन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन के अनुसार यूएस में 12 साल या उससे अधिक उम्र के लोगों की एक तिहाई जनसंख्या की सुनने की क्षमता बेहद कम है। इसके चलते वे सोशल आइसोलेशन, डिमेंशिया, डिप्रेशन और डिसएबिलीटी का शिकार हो जाते हैं।

एनआईएच की एक अन्य स्टडी के मुताबिक 130 प्रतिभागियों ने 2003 और 2005 के बीच हियरिंग परीक्षण करवाया। उसके बाद साल 2014 और 2016 के बीच एमआरआई स्कैन भी किया गया। इस बात की जानकारी मिलती है कि श्रवण हानि मस्तिष्क में आने वाले बदलावों से जुड़ी होती है।

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कई बार तनाव के चलते हियरिंग लॉस और डिमेंशिया का जोखिम बढ़ने लगता है। चित्र : एडॉबीस्टॉक

क्या है सुनने और मस्तिष्क स्वास्थ्य का संबंध

दरअसल, सेंसरी ऑर्गन ब्रेन से जुड़े हुए है और मस्तिष्क ध्वनियों को पहचानकर हम तक पहुंचाता है। लेकिन अगर ब्रेन उचित प्रकार से अपना काम नहीं कर पा रहा है, तो उसका असर सुनने की क्षमता पर भी पड़ने लगता है। जानते हैं इस बारे में क्या कहती हैं रिसर्च और एक्सपर्ट।

इस बारे में एमपीटी न्यूरो और वेलनेस कोच पूजा मलिक बताती हैं कि तनाव हमारे जीवन को कई प्रकार से प्रभावित करता है। कई बार तनाव के चलते हियरिंग लॉस और डिमेंशिया का जोखिम बढ़ने लगता है। दरअसल, सेंसरी लॉस के चलते कोई भी सेंसेशन ब्रेन तक नहीं पहुंच पाती है। बढ़ती उम्र के साथ ब्रेन में टिशु डिजनरेट होने लगते है। ऐसे में हियंरिंग प्रोबलम बढ़ने की संभावना होती है। जो डिमेंशिया का कारण साबित होता है।

सोशल आइसोलेशन करता है ब्रेन फंक्शन को प्रभावित

सुनने की क्षमता कम होने के चलते वे लोगों की बातों को सुनने और उनसे अन्य लोगों के समान बात करने में असमर्थ हो जाते हैं। इसके चलते उनका सोशल सर्कल धीरे धीरे कम होने लगता है। वे वर्बल और इमोशनल जानकारी से चूक सकते हैं, जो सामाजिक संपर्क बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। इसका असर दिमाग पर पड़ने लगता है। जो डिमेंशिया के खतरे को बढ़ाने में मदद करता है। सामानिक संपर्क में कटौती के अलावा अत्यधिक धूम्रपान और निष्क्रियता भी डिमेंशिया का मुख्य जोखिम कारक है।

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Hearing loss ka kaise badhta hai khatra
उपचार न करवाने पर न सुनने की क्षमता साउंडस को याद रखने की ताकत को कम कर देती है। चित्र : अडोबी स्टॉक

मस्तिष्क का कार्य किस प्रकार से होता है प्रभावित

नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ हेल्थ के अनुसार मिडलाइफ़ में डिमेंशिया के 9 फीसदी मामलों में न सुनने की समस्या पाई जाती है। आंकड़ों की मानें, तो दुनिया भर में 47 मिलियन लोग इस समसया से जूझ रहे है। वहीं जर्नल ऑफ अल्जाइमर डिज़ीज़ की एक रिपोर्ट के मुताबिक वो व्यक्ति जो सुनने में सक्षम नहीं है। उन्होंने मस्तिष्क के चार मुख्य लोब्स में से एक टेम्पोरल लोब के ऑडिटरी एरिया और भाषा प्रसंस्करण से जुड़े फ्रंटल कॉर्टेक्स के भाषा से जुड़े क्षेत्रों में सामान्य अंतर प्रदर्शित किया।

इससे इस बात की जानकरी पाई गई कि सुनने की शक्ति कम होने मस्तिष्क के क्षेत्रों में परिवर्तन आने लगता है। साथ ही मस्तिष्क के उन क्षेत्रों में भी जो किसी कार्य पर फोक्स् करने में हमारी मदद करते हैं। यूसी सैन डिएगो हर्बर्ट वर्टहेम स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के प्रमुख जांचकर्ता लिंडा के मैकएवॉय ने कहा ध्वनियों को समझने की कोशिश में शामिल अतिरिक्त प्रयास मस्तिष्क में परिवर्तन पैदा कर सकते हैं जिससे डिमेंशिया का खतरा बढ़ जाता है।

इस तरह बढ़ जाता है डिमेंशिया का जोखिम

जॉन्स हॉपकिन्स मेडिसिन के एक शोध के अनुसार वे लोग जो थोड़ा कम सुनते हैं। उनमें नॉर्मल हियरिंग पावर वाले लोगों के मुकाबले ब्रेन टिशु जल्दी नष्ट होने लगते हैं। वे लोग जो सुनने की सुस्या से जूझ रहे हैं। उन्हें सालाना अपनी हियरिंग पावर को चेक करवाना चाहिए। दरअसल, उपचार न करवाने पर न सुनने की क्षमता साउंडस को याद रखने की ताकत को कम कर देती है। इससे सुनने वाली तंत्रिकाओं के कार्य में बाधा आने लगती है। इससे ब्रेन को पूरी तरह से मैसेज नहीं मिल जाता है। जो डिमेंशिया का कारण बन जाता है।

ध्यान रखें

अपने एजिंग पेरेंट्स के स्वास्थ्य का ख्याल रखते समय समय-समय पर उनकी श्रवण क्षमता पर ध्यान देना भी जरूरी है। अगर वे लगातार ऊंचा सुनने का अनुभव कर रहे हैं, तो जरूरी है कि डॉक्टर से मिलकर उन्हें हियरिंग एड दी जाए। इसके साथ यह भी जरूरी है कि उनकी सोशली कनेक्ट रखा जाए। ताकि वे किसी भी तरह अपने आप को अकेला महसूस न करें।

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लंबे समय तक प्रिंट और टीवी के लिए काम कर चुकी ज्योति सोही अब डिजिटल कंटेंट राइटिंग में सक्रिय हैं। ब्यूटी, फूड्स, वेलनेस और रिलेशनशिप उनके पसंदीदा ज़ोनर हैं। ...और पढ़ें

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