मां और बच्चे की सुरक्षा के लिए सिजेरियन सेक्शन (cesarean section) या सी-सेक्शन (C-Section) या सिजेरियन डेलिवरी (cesarean delivery) की जाती है। मां के पेट और गर्भाशय में किए गए कट के माध्यम से बच्चे की सर्जिकल डिलीवरी की जाती है। थोड़े दिन की देखभाल के बाद मां और बच्चा पूरी तरह सामान्य जिंदगी जीने लगते हैं। सिजेरियन सेक्शन के उन्नत तरीकों और इससे होने वाले हानि-लाभ पर पर लगातार शोध होते रहते हैं। एक हालिया शोध बताते हैं कि सिजेरियन सेक्शन के माध्यम से पैदा हुए बच्चों में बाद के जीवन में नन कम्युनिकेबल डिजीज और मोटापा विकसित होने की संभावना अधिक होती है।
फिनलैंड के तुर्कू विश्वविद्यालय में हाल में सिजेरियन सेक्शन के माध्यम से पैदा हुए शिशुओं पर डॉक्टरेट अध्ययन किया गया। इससे पता चला कि सिजेरियन सेक्शन से पैदा हुए शिशुओं में आगे के जीवन में नन कम्युनिकेबल डिजीज और मोटापा विकसित हो सकते हैं। शोध निष्कर्ष के अनुसार, सिजेरियन सेक्शन स्तन के दूध की माइक्रोबायोटा संरचना को प्रभावित करता है।
जन्म के बाद स्तन के दूध के माध्यम से अलग तरह का माइक्रोबियल संपर्क बना रहता है। इससे शुरुआत में बच्चे के माइक्रोबियल कांटेक्ट में वेरिएशन जिम्मेदार हो सकता है। सिजेरियन सेक्शन के माध्यम से पैदा हुए व्यक्तियों में 21 वर्ष की आयु तक अस्थमा, एलर्जी और मोटापे का खतरा अधिक देखा गया।
दुनिया भर में सिजेरियन सेक्शन से जन्म लेने वाले शिशुओं की संख्या बढ़ रही है। फ़िनलैंड और अन्य नॉर्डिक देशों में तो यह वृद्धि अन्य देशों की तुलना में कम रही है। इस शोध का उद्देश्य बच्चे के बाद के स्वास्थ्य पर जन्म लेने के तरीकों और लंबे समय बाद बच्चे के स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव को जांचना था।
गर्भावस्था के दौरान सूजन पैदा करने वाले बैक्टीरिया के अनुपात में वृद्धि के साथ मां की आंत के माइक्रोबायोटा में भी परिवर्तन देखा गया। अध्ययन में पाया गया कि मां के इंटेस्टिनल माइक्रोबायोटा में बच्चे के जन्म के बाद भी अपरिवर्तित रहे।
भले ही, मां के ब्लड में सूजन बढ़ाने वाले मीडिएटर का कंसंट्रेशन बढ़ गया। इससे डेलिवरी के बाद शरीर में सूजन की स्थिति बनी रही। शोधकर्ता इस बात पर जोर देते हैं कि इससे भविष्य में सिजेरियन सेक्शन के बाद शुरुआती दौर में नवजात शिशु के माइक्रोबियल संपर्क को संशोधित करने के सुरक्षित तरीकों का पता लगाने में मदद मिलेगी।
सी-सेक्शन बैक्टीरिया फाइलम के डिलेड कालोनाइजेशन, टोटल माइक्रोबायोटा की विविधता में कमी और जन्म के बाद पहले दो वर्षों में Th1 रेस्पोंस में कमी के साथ जुड़ा हुआ है। इंटेसटिनल एपिथेलियल सेल गट माइक्रोबायोटा और होस्ट के बीच क्रॉस टॉक की मध्यस्थता करती है।
सी-सेक्शन के माध्यम से जन्म लेने वाले शिशुओं में सामान्य माइक्रोबायोम विकसित होने में कुछ समय लगता है। उस दौरान प्रतिरक्षा प्रणाली (Children Immune System) भी विकसित हो रही होती है। इसलिए उनमें बाद में अस्थमा (Asthma in Children) जैसी कुछ बीमारियों के विकसित होने का खतरा अधिक हो जाता है।
इसलिए यह आशंका जताई जाती है कि सिजेरियन से पैदा हुए बच्चों में टाइप 1 डायबिटीज (Type 1 Diabetes), एलर्जी (Allergy) और अस्थमा (Asthma) जैसे कुछ डिसऑर्डर का खतरा अधिक होता है। एक अनियमित प्रतिरक्षा प्रणाली संक्रमण के खिलाफ शरीर की रक्षा करने में अच्छी तरह भूमिका नहीं निभा सकती है। सी-सेक्शन के माध्यम से जन्म लेने वाले शिशुओं में समस्या हो सकती है या नहीं भी। इस दिशा में और अधिक शोध की आवश्यकता है।
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