लंबी उम्र पाने के लिए हमारा स्वस्थ रहना जरूरी है। स्वस्थ रहने के लिए हेल्दी खानपान और हेल्दी लाइफस्टाइल दोनों जरूरी है। हेल्दी लाइफस्टाइल के लिए सूर्य की रोशनी का बहुत महत्व है। तभी हमारे शरीर की कोशिकाएं भी स्वस्थ रहेंगी। हाल में आया एक रिसर्च बताता है कि सोलर एनर्जी से पॉवर प्राप्त कोशिकाएं अधिक स्वस्थ होती हैं और इंसान लंबी उम्र पाता (effect of sunlight on lifespan) है।
जर्नल नेचर एजिंग में एक नया शोध आलेख प्रकाशित हुआ है। इसके अनुसार, जेनेटीकली इंजीनियर्ड माइटोकॉन्ड्रिया लाइट एनर्जी को केमिकल एनर्जी में परिवर्तित कर सकता है। इस एनर्जी का उपयोग कोशिकाएं करती हैं, जिससे उम्र बढ़ने की संभावना दिखी। यह प्रयोग राउंडवॉर्म सी एलिगेंस पर किया गया। इससे वॉर्म का लाइफ स्पैन(Lifespan) बढ़ा हुआ देखा गया। शोध से ऐसी संभावना दिखी कि मनुष्यों में सोलर एनर्जी(Solar Energy) से चार्ज होने वाली कोशिकाओं पर अधिक प्रभाव पड़ ( (effect of sunlight on lifespan) सकेगा। इससे एजिंग (Aging) की प्रक्रिया पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकेगा।
शोधकर्ताओं के अनुसार, माइटोकॉन्ड्रियल फंक्शन उम्र बढ़ने का परिणाम है। इस शोध में पाया गया कि प्रकाश-संचालित माइटोकॉन्ड्रिया का उपयोग चयापचय (Metabolism) को बढ़ावा देने में हुआ। इससे प्रयोगशाला के वर्म ने लंबा और स्वस्थ जीवन जिया। इससे माइटोकॉन्ड्रिया का और अध्ययन करने और उम्र से संबंधित बीमारियों उसके इलाज के नए तरीकों की पहचान करने में मदद मिलेगी।
माइटोकॉन्ड्रिया शरीर के अधिकांश कोशिकाओं में पाए जाने वाले अंग हैं। इसे सेलुलर पावर प्लांट्स के रूप में जाना जाता है। माइटोकॉन्ड्रिया ग्लूकोज का उपयोग कर एडेनोसिन ट्राइफॉस्फेट (एटीपी) का उत्पादन करता है। यह कंपाउंड कोशिका में महत्वपूर्ण कार्यों के लिए ऊर्जा प्रदान करता है। इसके कारण ही मांसपेशियों में संकुचन और इलेक्ट्रिक इम्पल्स पैदा होते हैं। इससे नर्व सेल को एक दूसरे के साथ संवाद करने में मदद मिलती है।
प्रोटॉन के आदान-प्रदान की प्रतिक्रिया का परिणाम है एटीपी का उत्पादन। इसके कारण माइटोकॉन्ड्रिया अलग-अलग डिब्बों में बनता होता है। यह क्रिया एक झिल्ली में होती है। उम्र बढ़ने के साथ झिल्ली की क्षमता घटने लगती है। उम्र से संबंधित कई बीमारियों जैसे कि न्यूरोडीजेनेरेटिव विकार इसी के कारण होता है। वैज्ञानिकों द्वारा बुनियादी जैविक सिद्धांतों को समझने के लिए सूक्ष्म राउंडवॉर्म सी. एलिगेंस का प्रयोग किया जाता रहा है। कई मामलों में इसके शरीर की प्रतिक्रिया एनिमल बॉडी जैसी ही होती है।
इस पर प्रयोग करने के लिए यूएस और जर्मनी के शोधकर्ताओं की एक टीम ने ऑप्टोजेनेटिक्स का सहारा लिया। ऑप्टोजेनेटिक्स कोशिकाओं के भीतर जैविक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने के लिए प्रकाश का उपयोग करता है। न्यूरोसाइंटिस्ट मस्तिष्क गतिविधि के पैटर्न और विशिष्ट न्यूरॉन्स पर अध्ययन करने के लिए इसे प्रयोग में लाते हैं।
शोधकर्ताओं ने पाया कि जेनेटिकली इंजीनियर्ड सी. एलिगेंस के माइटोकॉन्ड्रिया प्रकाश के संपर्क में आने पर प्रकाश से ऊर्जा का उपयोग किया। प्रोटॉन पंपों ने माइटोकॉन्ड्रिया को चार्ज करने के लिए झिल्ली के पार आवेशित आयनों को स्थानांतरित किया। इस प्रक्रिया में शोधकर्ताओं ने पाया कि इससे माइटोकॉन्ड्रिया की झिल्ली क्षमता और एटीपी उत्पादन दोनों में वृद्धि हुई। इसके परिणामस्वरूप राउंडवॉर्म के जीवनकाल में 30-40 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई।
शोधकर्ताओं के अनुसार, माइटोकॉन्ड्रिया बिजली संयंत्र के समान हैं। इसमें वे सेल के लिए उपयोगी ऊर्जा का उत्पादन करने के लिए कार्बन, मुख्य रूप से ग्लूकोज के स्रोत का प्रयोग करते हैं। यह ऊर्जा सौर पैनल से जुड़े होने के कारण मिली।
यह अध्ययन महत्वपूर्ण है। इससे शोधकर्ताओं को मानव शरीर में माइटोकॉन्ड्रिया द्वारा निभाई जाने वाली जटिल जैविक भूमिकाओं के बारे में अधिक जानकारी मिल सकेगी। यह अध्ययन जीवित कोशिका में माइटोकॉन्ड्रिया का अध्ययन करने और उसके कार्य का समर्थन करने के तरीकों की पहचान करने की दिशा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेगा।
हालांकि इस दिशा में और अधिक शोध की जरूरत है। माइटोकॉन्ड्रिया वास्तव में जानवर में कैसे व्यवहार करता है। इससे अधिक उम्र होने पर होने वाली बीमारियों और अधिक आयु पाने के तरीके के बारे में जानकारी मिल सकेगी।
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