25 वर्षीय मरीज़ की छाती में था फुटबॉल से भी बड़ा ट्यूमर, सर्जरी के बाद निकाला गया

ट्यूमर ने मरीज़ की छाती में 90% से अधिक जगह घेर रखी थी, जिसके चलते दोनों फेफड़े केवल 10% क्षमता से काम कर पा रहे थे।
Chest me tumor ki ek rare surgery ki gayi hai chest
छाती में ट्यूमर के एक दुर्लभ मामले की सर्जरी की गई है। चित्र : शटरस्टॉक
टीम हेल्‍थ शॉट्स Updated: 21 Oct 2021, 19:37 pm IST
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छाती में बड़े आकार के ट्यूमर का एक दुर्लभ मामला सामने आया है। जिसे 4 घंटे की लंबी सर्जरी के बाद निकाल दिया गया है। अपनी तरह के इस दुर्लभ मामले में ट्यूमर का वजन 13.85 किलोग्राम था, जो एक फुटबॉल से भी बड़ा है। 25 वर्षीय इस युवक की सर्जरी दिल्ली के निजी अस्पताल में की गई। हालांकि दुर्लभ ब्लड ग्रुप और सर्जरी के बाद भी युवक को कुछ जटिलताओं का सामना करना पड़ा।

क्या है पूरा मामला 

फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्‍टीट्यूट में डायरेक्‍टर एवं हैड, सीटीवीएस डॉ. उद्गीथ धीर ने डॉक्‍टरों की टीम के साथ मिलकर 25 वर्षीय युवक के सीने से 13.85 किलोग्राम वज़न का दुनिया का सबसे बड़े आकार का ट्यूमर सफलतापूर्वक निकालकर चिकित्‍सा जगत में एक बेहद चुनौतीपूर्ण और दुर्लभ किस्‍म की सर्जरी को अंजाम दिया है।

इससे पहले छाती में सबसे बड़े आकार का ट्यूमर गुजरात में एक मरीज़ के सीने से निकाला गया था जिसका वज़न 9.5 किलोग्राम था।

ट्यूमर की वजह से सांस लेने में भी थी मुश्किल 

मौजूदा मामले में, मरीज़ देवेश शर्मा को बेहद गंभीर हालत में जब फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्‍टीट्यूट, गुरुग्राम लाया गया तो वह सांस नहीं ले पा रहे थे और उनके सीने में बेहद बेचैनी थी। पिछले 2-3 महीनों से तो वह सांस की तकलीफ के चलते बिस्‍तर पर सीधे लेटकर सो भी नहीं सकते थे।

tumor ki vajah se mariz saans bhi nahi le pa raha tha
ट्यूमर की वजह से युवक ठीक से सांस भी नहीं ले पा रहा था। प्रतीकात्मक चित्र: शटरस्टॉक

अस्‍प्‍ताल में जांच के बाद, पल्‍मोनोलॉजिस्‍ट ने उन्‍हें छाती का सीटी स्‍कैन करवाने की सलाह दी। इस स्‍कैन रिपोर्ट से पता चला कि उनके सीने में एक बड़े आकार का ट्यूमर था। जो छाती में करीब 90 फीसदी जगह घेरे हुए था। इसने न सिर्फ हृदय को ढक रखा था, बल्कि दोनों फेफड़ों को भी अपनी जगह से हिला दिया था। इसके चलते फेफड़े सिर्फ 10 प्रतिशत क्षमता से ही काम कर रहे थे। अस्‍पताल के वरिष्‍ठ डॉक्‍टरों ने देवेश को इस मामले में इलाज के लिए डॉ उद्गीथ धीर से मिलने की सलाह दी।

दुर्लभ ब्लड ग्रुप भी था चुनौती 

सर्जरी तो अपने आप में चुनौतीपूर्ण थी ही, मरीज़ के दुर्लभ ब्‍लड ग्रुप – एबी नेगेटिव ने स्थिति को और गंभीर बना दिया था। जब मरीज़ों के सीने में बड़े आकार के ट्यूमर मौजूद होते हैं तो ऐसे में एनेस्‍थीसिया देना काफी मुश्किल होता है।

दरअसल, एनेस्‍थीसिया देते समय, ट्यूमर के वज़न की वजह से हृदय पर दबाव बढ़ता है। जिसके चलते रक्‍तप्रवाह अवरुद्ध हो सकता है और ऐसे में ब्‍लड प्रेशर काफी गिर जाता है।

इस स्थिति से बचने और सर्जरी के जोखिम को कम करने के लिए डॉक्‍टरों को, जरूरत पड़ने पर मरीज़ को लोकल एनेस्‍थीसिया देकर इमरजेंसी कार्डियाक पल्‍मोनेरी बायपास के लिए तैयार रखना था। एनेस्‍थीसिया टीम ने सर्जरी से पहले एनेस्‍थीसिया देने की भारी तैयारी कर रखी थी और ऑपरेशन के दौरान किसी किस्‍म की जटिलता पैदा नहीं हुई।

इस जटिल सर्जरी के बारे में, डॉ उद्गीथ धीर ने कहा, ”मरीज़ हमारे पास काफी गंभीर स्थिति में आया था, क्‍योंकि सीने में बड़े आकार के ट्यूमर की वजह से उनके फेफड़ों पर काफी दबाव था। वे दैनिक गतिविधियों के लायक नहीं रहे थे।

चुनौतीपूर्ण थी 4 घंटे चली लंबी सर्जरी 

मरीज़ की सर्जरी 4 घंटे चली और इस दौरान उनकी छाती को दोनों तरफ से खोला गया तथा बीचों-बीच मौजूद छाती की मुख्‍य हड्डी (स्‍टरनम) को काटना पड़ा था। तकनीकी तौर पर इसे क्‍लैम शैल इन्‍साइज़न कहा जाता है।

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इतने बड़े आकार के ट्यूमर को मिनीमल इन्‍वेसिव सर्जरी से हटाना नामुमकिन था। ऐसे में छाती को पूरा खोलने के सिवाय कोई विकल्‍प नहीं था। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान, मरीज़ के शरीर में पर्याप्‍त रक्‍त प्रवाह को बनाए रखना सबसे ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण था।

भारी ट्यूमर के चलते यह काफी जोखिमपूर्ण सर्जरी थी और अनेक रक्‍तवाहिकाओं के चलते ऑपरेट करना मुश्किल था क्‍योंकि ट्यूमर को नियंत्रित करना तथा ट्यूमर कैपसूल को संभालना भी जरूरी था।

डॉ धीर ने बताया, ”सर्जरी के बाद मरीज़ को पर्याप्‍त हिमोस्‍टेसिस के उपरांत आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया था। अगले दिन उनके शरीर से ट्यूब निकाल दी गईं। शुरू में उन्‍हें वेंटिलेशन पर रखा गया और बाद में उससे भी हटा दिया गया।

सर्जरी के बाद भी कम नहीं थीं चुनौतियां 

कुछ समय बाद उनके खून में कार्बन डाइऑक्‍साइड का स्‍तर बढ़ने लगा, जिसकी वजह से शुरू में कुछ सिकुड़ चुके उनके फेफड़े फिर से फैलने लगे और इसके चलते री-एक्‍सपेंशन पल्‍मोनरी इडिमा (आरपीई) की शिकायत मरीज़ को हुई।

हमने बिना किसी इन्‍वेसिव वेंटिलेटर सपोर्ट के इस स्थिति से उन्‍हें उबारने का प्रयास किया, लेकिन 48 घंटे बाद मरीज़ को वापस वेंटिलेटर पर रखना पड़ा। उनकी हालत देखते हुए, हमने ट्रैकेस्‍टॅमी करने का फैसला किया।

जिसके चलते उनकी गर्दन में एक मामूली छेद किया गया ताकि वहां से उनके शरीर में जमा हो रहे स्राव को निकाला जा सके, क्‍योंकि उनके हृदय में काफी जमाव होने लगा था। मरीज़ को 39 दिनों तक आईसीयू में रखा गया और इसके बाद उन्‍हें कमरे में शिफ्ट किया गया तथा उनकी ट्रैकेस्‍टॅमी को हटाया गया।

अब मरीज़ की हालत में सुधार हो रहा है और उन्‍हें मामूली तौर पर ऑक्‍सीजन सपोर्ट की आवश्‍यकता है। हमें बेद खुशी है कि मरीज़ धीरे-धीरे स्‍वास्‍थ्‍य लाभ कर रहे हैं।”

इस सर्जरी के बारे में डॉ ऋतु गर्ग, ज़ोनल डायरेक्‍टर, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्‍टीट्यूट ने कहा, ‘यह काफी दुर्लभ और अत्‍यंत जोखिमपूर्ण मामला था। पूरे मामले को बेहद सावधानीपूर्वक अंजाम दिया गया और डॉ उद्गीथ तथा उनकी टीम ने इसमें अत्‍यंत दक्षता तथा विशेषज्ञता का परिचय दिया। मैं एक ऐसे मरीज़ की जोखिमपूर्ण सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम देते हुए उन्‍हें जीवनदान देने वाले डॉक्‍टरों की टीम का आभार व्‍यक्‍त करती हूं।”

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