मेघालय में 2 साल के बच्चे में दिखे पोलियो के लक्षण, क्या भारत में अब भी है पोलियो का जोखिम?

बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर सतर्क रहना बेहद आवश्यक है। उनके खान पान से लेकर वैक्सीन का ख्याल रखने से बीमारियों के जोखिम को कम किया जा सकता है। जानते हैं पोलियों से बचाव के लिए रखें किन बातों का ख्याल
India ke Meghalaya me polio ka ek rare case samne aaya hai
मेघालय में एक दो वर्षीय बालक में पोलियो के लक्षण दिखाई दिए हैं। चित्र : अडोबी स्टॉक
ज्योति सोही Updated: 22 Aug 2024, 10:54 am IST
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बच्चे के जन्म के साथ ही उसका वैक्सीन कार्ड तैयार कर दिया जाता है। नवजात की देखरेख से लेकर उसे समय से दवा और वैक्सीन दिलवाना माता पिता की प्राथमिकता होती है। इन्हीं वैक्सीन में से एक है पोलियो की दवा (polio vaccine), जिसे ड्राप या वैक्सीन के रूप में बच्चे को दिया जाता है। इसी बीच मेघालय के वेस्ट गारो हिल्स जिले में पोलियो का मामला (polio in India) प्रकाश में आया है। दो साल के बच्चे में पाए गए पोलियों के लक्षणों से लोग चिंताग्रस्त हैं।

भारत में पल्स पोलियो कार्यक्रम की शुरूआत 1995 में हुई थी। उसका मकसद पोलियो को जड़ से खत्म करने के लिए पांच साल और उससे कम उम्र के सभी बच्चों को ओरल पोलियो वैक्सीन की खुराक पिलाना था। कार्यक्रम के तहत बच्चों को घर घर जाकर दवा पिलाई जाती है।

क्या है पूरा मामला (Rare Polio case in Meghalaya)

मेघालय के वेस्ट गारो हिल्स जिले से कुछ दूरी पर स्थित एक गांव में दो साल के बच्चे में पोलियो का मामला पाया गया। असम के गोअलपारा अस्पताल में जांच के बाद बच्चे में एक्यूट फ्लेसिड पैरालिसिस की पुष्टि की गई है। इसके बाद स्वास्थ्य अधिकारियों ने जांच के आदेश जारी कर दिए है। डॉक्टरों की टीम ने सैंपल एकत्रित करके जांच के लिए भेज दिए हैं।

भारत पोलियो मुक्त कब घोषित हुआ (Pulse polio programme in India)

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजे़शन से भारत को 27 मार्च 2014 को पोलियो.मुक्त प्रमाणन प्राप्त हुआ। इससे पहले 13 जनवरी 2011 को पश्चिम बंगाल के हावड़ा में पोलियो का आखिरी मामला सामने आया था। पोलियो की रोकथाम के लिए भारत में पल्स पोलियो प्रतिरक्षण कार्यक्रम 1995 को शुरू किया गया था। उस वक्त विश्व के पोलियो मामलों में से लगभग 60 फीसदी भारत में थे।

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कंटेमिनेटिड पानी के संपर्क में आने से ये वायरस किसी बच्चे को अपनी चपेट में ले लेता है। चित्र : एडॉबीस्टॉक

क्या है पोलियो और कैसे फैलता है (What is polio and how it spread)

इस बारे में पीडियाट्रीशियन डॉ अभिषेक नायर बताते हैं कि पोलियो वायरस के ज़रिए फैलता है। ये वायरल इस समस्या से ग्रस्त बच्चे के स्टूल में पाया जाता है। स्टूल या फिर उससे कंटेमिनेटिड पानी के संपर्क में आने से ये वायरस किसी बच्चे को अपनी चपेट में ले लेता है।

शरीर में प्रेवश करने के बाद ये वायरस उस नर्व को डैमेज कर देता है जिससे बॉडी में सेंसेशन बढ़ती है। सात साल से कम उम्र के बच्चों में इस समस्या का जोखिम बना रहता है। मगर उसके बाद बच्चों का इम्यून सिस्टम मज़बूत हो जाता है, जिसके चलते बच्चों को पोलियों का खतरा नहीं रहता है।

बच्चों को पोलियो के जोखिम से बचाने के लिए दो प्रकार की वैक्सीन प्रयोग में लाई जा रही हैं। पहला है ओरल वैक्सीन, जिसमें बच्चों को पोलियों दवा की बूंद पिलाई जाती है। दूसरा है पोलियो वैक्सीन, जिससे बच्चों में पोलियो वायरस का जोखिम 99 फीसदी तक कम हो जाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 200 में से कोई 1 व्यक्ति परमानेंट पेरालिसिस का शिकार होता है। इससे स्पाइनल कॉर्ड और ब्रेन स्टेम में पेरालीसिस का खतरा बना रहता है। इसके चलते मांसपेशियों में दर्द और गंभीर ऐंठन बनी रहती है। इसके चलते ज्वाइंट वीकनेस, सांस लेने में तकलीफ, डिप्रेशन और नींद न आने की समस्या बढ़ जाती है।

Pulse polio abhiyan bharat me polio unmulan ke liye chalaya gaya tha
पल्स पोलियो अभियान भारत में पोलियो के उन्मूलन का एक वृहत अभियान रहा है। चित्र : अडोबी स्टॉक

क्या है पोलियो की पहली स्टेज (First stage of polio)

पोलियो के लक्षण वायरस के संपर्क में आने के 3 से लेकर 21 दिनों बाद देखने को मिलते है। इस स्टेज को प्री पेरेलिटिक स्टेज कहा जाता है। ऐसे में बच्चे को थकान, बुखार, उल्टी और सिरदर्द की शिकायत होने लगती है। इसे एक्यूट स्टेज भी कहा जाता है, जिसमें गर्दन में स्टिफनेस महसूस होने लगती है और ऑटोनॉमिक डिस्फंक्शन का सामना करना पड़ता है।

क्या हो सकते हैं पोलियो के प्रारंभिक लक्षण (symptoms of polio)

1. तेज़ बुखार

बच्चों को कई कारणों से बुखार का सामना करना पड़ता है। पोलियो से ग्रस्त बच्चों को बार बार बुखार होने लगता है। तेज़ चढ़ने वाला बुखार पोलियो को दर्शाता है।

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पोलियो से ग्रस्त बच्चों को बार बार बुखार होने लगता है।। चित्र : शटरस्टॉक

2. थकान महसूस होना

दिनभर खेलकूद करने के बावजूद भी बच्चे एनर्जी से भरपूर रहते हैं। मगर इस समस्या से ग्रस्त होने के बाद बच्चों को थकान और कमज़ोरी महसूस होती है। इससे बच्चे खेलना कूदना बंद कर देते हैं।

3. सिरदर्द की शिकायत

वायरस से बढ़ने वाली पोलियो की समस्या का प्रभाव नर्वस पर दिखने लगता है। इससे स्पाइन और ब्रेन स्टेम पर असर दिखने लगता है। इसके चलते व्यक्ति को हिलने डुलने में तकलीफ होती है और सिरदर्द का सामना करना पड़ता है।

4. मसल्स स्टिफनेस का बढ़ना

वे बच्चे जो पोलियो से ग्रस्त होते हैं, उन्हें मसल्स वीकनेस का सामना करना पड़ता है। इससे टांगो में पेरालिसिस का सामना करना पड़ता है। टांगो में कमज़ोरी बढ़ जाती है और मसल्स श्रिंक हो जाते है। इसके अलावा गर्दन में दर्द व स्टिफनेस बढ़न लगती है।

बच्चों को कब दी जाती है पोलियो की दवा (When polio medicine given to children)

  • सबसे पहले 2 महीने के बच्चे को पोलियो की दवा पिलाई जाती है। पहले शॉट के साथ बच्चे का इम्यून सिस्टम मज़बूत बनने लगता है।
  • नवजात को इस बीमारी से बचाने के लिए दूसरा पोलियो शॉट 4 माह की उम्र में दिया जाता है। ताकि बच्चे को इस समस्या के लक्षणों को बचाया जा सके।
  • उसके बाद 6 से 18 माह के बीच बच्चे को पोलियो की तीसरी खुराक दी जाती है। इसे दवा के रूप में या वैक्सीन के रूप में दिया जा सकता है।
  • सबसे आखिर में 4 से 6 साल के बच्चे को पोलियो की बूस्टर डोज़ दी जाती है। इससे बच्चे में इस बीमारी का खतरा कम होता है और बच्चे का शरीर अपना इॅयून सिस्टम मज़बूत बना लेता है।
Polio medicine hai jaruri
बच्चे को समय पर पोलियो की दवा पिलाने या वैक्सीन लगवाने से इस समस्या की रोकथाम की जा सकती है।
चित्र : शटरस्टॉक

पोलियो से बचाव के लिए जरूरी है इन चीजों का ध्यान रखना (Tips to prevent polio)

  • बच्चे को समय पर पोलियो की दवा पिलाने या वैक्सीन लगवाने से इस समस्या की रोकथाम की जा सकती है।
  • गंदे पानी के सेवन से बचना चाहिए। दरअसल, कंटेमिनेटिड वॉटर से वायरस बच्चे के शरीर में प्रेवश कर सकता है। ऐसे में साफ या उबला हुआ पानी पीएं।
  • साफ सफाई का ख्याल रखें। कचरा और गंदगी के नज़दीक रहने से बच्चे के वायरस के चपेट में आने की आंशका बढ़ने लगती है।
  • हाथों की स्वच्छता बनाए रखें। बच्चों को रोज़ नहलाएं और उनके हाथों को भी स्वच्छ रखें। इसके अलावा उनके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले खिलौने, झुला और साइकल समेत अन्य सामान को भी साफ सुथरा रखें।
  • बच्चे में इम्यून सिस्टम को बूस्ट करने के लिए मां का दूध अवश्य दें। इससे बच्चे में एंटीबॉडीज़ बनने लगती है, जिससे इम्यून सिस्टम मज़बूत हो जाता है।

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लेखक के बारे में

लंबे समय तक प्रिंट और टीवी के लिए काम कर चुकी ज्योति सोही अब डिजिटल कंटेंट राइटिंग में सक्रिय हैं। ब्यूटी, फूड्स, वेलनेस और रिलेशनशिप उनके पसंदीदा ज़ोनर हैं। ...और पढ़ें

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