मौसम बदल रहा है। कभी सर्दी, तो कभी गर्मी के कारण सांस की समस्या हो सकती है। जिन लोगों को अस्थमा या दमा की समस्या है, मौसम में बदलाव आने पर उनकी समस्या और बढ़ जाती है। प्रदूषण के कारण भी अस्थमा का जोखिम बढ़ जाता है। उनकी सामान्य सांस लेने की गति बढ़ जाती है। इससे उन्हें फिजिकल एक्टिविटी में भी दिक्कत होने लगती है। सही उपचार नहीं होने पर यह जानलेवा भी हो सकता है। दवा के साथ-साथ यदि नियमित रूप से योगासन और प्राणायाम किया जाए, तो अस्थमा से बचाव हो सकता है। इसमें सबसे प्रभावी भस्त्रिका प्राणायाम (Bhastrika Pranayam for Asthma) है।
‘योगासन करें स्वस्थ रहें’ किताब में योगाचार्य सुरेश सिन्हा बताते हैं कि यदि सही तरीके से भस्त्रिका प्राणायाम किया जाए, तो सांस संबंधी कई समस्याओं से बचाव हो सकता है। इसके अलावा पाचन तंत्र भी मजबूत हो सकता है।
भस्त्रिका प्राणायाम को बेलोज ब्रीथ के नाम से भी जाना जाता है। यह हीटिंग ब्रीदिंग प्रोसेस है। इससे ऐसा लगता है कि हवा के स्थिर प्रवाह के साथ आग को हवा दी जा रही है। असल में भस्त्रिका एक संस्कृत शब्द है। इस शब्द का मतलब होता है धौंकनी। इस अभ्यास के दौरान पेट और फेफड़ों में हवा भरी और खाली की जाती है।
सुरेश सिन्हा बताते हैं कि सबसे पहले किसी आसन में बैठ जाएं। सिर एवं रीढ़ की हड्डी को सीधी रखें। आंखों को बंद कर लें। शरीर को स्थिर रखें। बाएं हाथ को बाएं घुटने पर रखें। दायें हाथ को दोनों भौहों के बीच मस्तक पर रखें।
दायां नथुना बंद कर लें। बाएं नथुने से जल्दी-जल्दी 15-20 बार सांस लें और छोड़ें। सांस लेने और छोड़ने पर पेट का सिकुड़ना और फैलना लयबद्ध तरीके से होना चाहिए। इसके बाद लंबी सांस लें। सांस अंदर रोक लें। बायां नथुना भी बंद कर लें।
जालंधर (चेहरे को नीचे झुका लें और ठुड्ढी को गर्दन से लगा लें) या मूलबंध (एड़ी से पेट तक दबाव देते हुए वायु को बलपूर्वक धीरे-धीरे ऊपर की ओर खींचा जाता है) लगा लें। जब तक संभव हो सके सांस रोके रखें।
फिर बाएं नथुने से रेचक (तेजी से सांस छोड़ना) करते हुए सांस बाहर करें। इस क्रिया को दायें नथुने से करें। इस तरह एक आवृति पूरी हो जाती है। इस तरह से तीन आवृति करें।
इसके बाद दोनों हाथों को घुटनों पर रखें। दोनों नथुनों से 20 बार सांस लें और छोड़ें। फिर लंबी सांस लेकर रोकें। आगे पूर्व में की गई प्रक्रिया को दोहरायें। हर नाक से तीन आवृति करें।
इस प्राणायाम से फेफड़े अनावश्यक हवा और बैक्टीरिया मुक्त हो जाते हैं। यानी वे शुद्ध हो जाते हैं।
इसके नियमित अभ्यास से अस्थमा के लक्षणों को कंट्राेल किया जा सकता है।
गले की हर तरह की जलन और पुराने कफ दूर होते हैं।
जठराग्नि उत्तेजित होती है। जिससे पाचन शक्ति बढती है।
भस्त्रिका प्राणायाम से मन स्थिर और शांत होता है।
इस आसन में फेफड़े पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। इसलिए कभी भी सांस पर बहुत अधिक जोर न लगाएं। शुरुआत में भस्त्रिका प्राणायाम का अभ्यास धीरे-धीरे करें। शरीर ज्यादा नहीं हिलना चाहिए। चेहरे पर भी अधिक दबाव नहीं पड़ना चाहिए।
फिर उसकी गति में बढ़ोतरी करें। यदि किसी तरह की कोई बीमारी है, तो इस प्राणायाम को न करें।
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