आज के समय में तरह-तरह के वीडियो गेमिंग टूल्स इंट्रोड्यूस हो चुके हैं। बच्चों से लेकर यंग एडल्ट्स भी वीडियो गेमिंग के एडिक्ट हो चुके हैं। ये लोग लगातार बैठकर लंबे समय तक वीडियो गेम्स खेलते रहते हैं, जिसका उनकी सेहत पर बेहद नकारात्मक असर देखने को मिल सकता है। खासकर इसका प्रभाव मसल्स और स्पाइन पर देखने को मिलता है। ऐसे में समय के साथ स्थिति खराब हो सकती है और परेशानी बढ़ जाती है। इसलिए वीडियो गेमिंग के समय को लेकर पूरी तरह से सचेत रहने का प्रयास करें (video games bad effects)।
डीपीयू सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, पिंपरी, पुणे के कंसल्टेंट न्यूरोसर्जन डॉ. प्रशांत पुनिया ने लंबे समय तक वीडियो गेमिंग के साइड इफेक्ट्स पर बात की है। उन्होंने बताया कि आखिर किस तरह ये आपके मसल्स और स्पाइन डिजनरेशन का कारण बन सकता है।
क्यूरेटिव पीडियाट्रिक वेलबींग चिकित्सा देखभाल और चिंता में सबसे आगे रहा है। हालांकि, इसके अलावा प्रीवेंटिव पैट्रियोटिक हेल्थ केयर के लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता है, जिसे अक्सर अनदेखा किया गया है और कम प्रतिनिधित्व किया गया है। गेमिंग का प्रभाव इसके समय और बच्चे की दिनचर्या की अन्य गतिविधियों पर भी निर्भर करता है। ऐसी कई टेक्नोलॉजी है, जिसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही प्रभाव होते हैं, उसी प्रकार वीडियो गेमिंग के भी प्रभाव दोनो ही रूप से नजर आ सकते हैं।
अगर गेमिंग को टाइम मैनेजमेंट को ध्यान में रखते हुए इंजॉय किया जाए, तो इससे आंख और हाथ का कोऑर्डिनेशन मेंटेन रहता है। साथ ही साथ प्रोबलम सॉल्विंग स्किल्स भी इंप्रूव होती है। परंतु यदि टाइम मैनेजमेंट का ध्यान न दिया जाए और इन्हें एडिक्शन बना लिया जाए, तो ये आपके पोस्चर को बिगाड़ देता है, साथ ही साथ क्रॉनिक बैक पेन का कारण बनता है और मांसपेशियों से जुड़ी समस्याएं सहित नेक इंजरी का खतरा भी बढ़ जाता है।
वीडियो गेम खेलते समय सबसे आम मुद्रा है झुककर बैठना, सिर को आगे की ओर झुकाकर सामने स्क्रीन की ओर झुके रहना। यह आसन मानव की दो पैरों पर चलने वाली रीढ़ की शारीरिक वक्रता के विपरीत है और इस प्रकार समय के साथ पीठ के निचले हिस्से में दर्द और मांसपेशियों में ऐंठन होने लगती है।
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एक अध्ययन इसकी पुष्टि करता है कि यदि किसी को बचपन में पीठ दर्द है, तो वे क्रॉनिक बैक पेन से पीड़ित हो सकते हैं। ऐसे में बच्चों के पोस्चर में सुधार करने के लिए उन्हें अन्य गतिविधियां जैसे की योग, खेल, नृत्य, आदि में पार्टिसिपेट करने की सलाह दी जाती है। जब बच्चे इन गतिविधियों में व्यस्त रहते हैं, तो उनके पास वीडियो गेमिंग के लिए कम समय बचता है और समस्या खुद-ब-खुद कम होना शुरू हो जाती है।
“टेक्स्ट नेक सिंड्रोम” का प्रयोग अक्सर स्क्रीन पर देखने पर गर्दन की मांसपेशियों के आगे की ओर झुकने के कारण होने वाले दर्द और विकृति का वर्णन करने के लिए किया जाता है। यह नया है, लेकिन लंबे समय तक मोबाइल स्क्रीन गेमिंग में शामिल रहने वाले 40% बच्चों में ये समस्या देखने को मिल रही है। वहीं गर्दन के स्थाई रूप से झुके होने की वजह से रीढ़ की हड्डियों में भी तनाव बढ़ता है और स्पाइन संबंधी समस्याएं आपको परेशान कर सकती हैं।
जब बात इंजरी की आती है, तो वर्चुअल रियलिटी गेम्स इन में सबसे आगे होते हैं। ये प्रकृति में तीव्र और कठोर हो सकते हैं, क्योंकि वास्तविक समय प्रोप्रियोसेप्शन (अंतरिक्ष में जगह) से ऑडियो-विज़ुअल इनपुट का कनेक्शन होता है। इसके परिणामस्वरूप वास्तविक दुनिया में गंभीर चोटें लग सकती हैं, क्योंकि बच्चों को इंपेंडिंग कोलिशन के बारे में चेतावनी देने का कोई मतलब नहीं होता। इसके अलावा सबसे बड़ी चिंता का विषय होता है गेमिंग के दौरान का बॉडी पोस्चर।
डॉक्टर पुनिया के अनुसार गेमिंग पर समय सीमा लगाना बहुत जरूरी है। रिसर्च की माने तो बच्चों के लिए प्रति हफ्ता 2 घंटे से अधिक गेमिंग का कोई अतिरिक्त साइकोमोटर लाभ नहीं है और इसमें से 9 घंटे को चरम माना गया है। अब ये पूरी तरह से आपके उपर निर्भर करता है की आप इसका पॉजिटिव प्रभाव चाहती हैं या नेगेटिव।
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