सर्दियां (Winter) अपने साथ कुछ एक्स्ट्रा चर्बी (Fat) और वजन में बढ़ोतरी (Weight Gain) भी लेकर आती हैं। इस मौसम में ज्यादातर लोगों का वर्कआउट रुटीन गड़बड़ा जाता है। देर तक रजाई में सोते रहने और विटामिन डी में आई कमी (Lack of Vitamin D) के कारण वजन बढ़ना स्वभाविक है। उस पर ढेर सारे व्यंजन जो मिठास और फैट से ओवरलोडेड होते हैं। तब ऐसा क्या किया जाए कि बढ़ते वजन की रफ्तार कुछ धीमी पड़ जाए। तो विशेषज्ञ इसके लिए जो उपाय सुझा रहे हैं, उसका नाम है इंटरमिटेंट फास्टिंग (Intermittent Fasting)।
आधुनिक दौर में मोटापा पूरी दुनिया में सबसे बड़े स्वास्थ्य संकट के रूप में उभरा है। हाल के अध्ययनों से यह सामने आया है कि दुनियाभर में करीब 1.9 बिलियन वयस्क ओवरवेट हैं। जबकि 650 मिलियन लोग मोटापे यानी ऑबेसिटी (Obesity) के शिकार हैं। अत्यधिक कैलोरी युक्त फूड (यानी खानपान की गैर-सेहतमंद आदतें), व्यायाम रहित जीवनशैली के चलते विकासशील देशों में मोटापे का भारी जोखिम है।
इसकी वजह से मधुमेह (Diabetes) , इस्केमिक हार्ट डिज़ीज़ (Ischemic heart disease), जैसे प्रतिकूल स्वास्थ्य संकट भी बढ़ रहे हैं। भारत में, 135 मिलियन से अधिक लोग मोटापे से ग्रस्त हैं। आईसीएमआर-इंडियाबी अध्ययन 2015 के अनुसार, भारत में ओबेसिटी (Obesity) और सेंट्रल ओबेसिटी (पेट के चारों तरफ मोटापा) की दर क्रमश: 31.3% और 16.9%-36.3% है। भारत में, पेट पर चर्बी के चलते कार्डियोवास्क्युलर रोग (सीवीडी) का जोखिम बढ़ जाता है।
सामान्य से अधिक वज़न (Overweight) और मोटापा (Obesity) से ग्रस्त लोगों के पोषण संबंधी पहलुओं को अक्सर नज़रंदाज किया जाता है। हालांकि इंटरमिटेंट फास्टिंग जैसे आसान उपाय वज़न घटाने के मामले में कारगर साबित हो सकते हैं। फास्टिंग (उपवास), जिसे आमतौर पर ‘वज़न घटाने’ के लिया किया जाता है, वास्तव में, कई संस्कृतियों और आस्थाओं का अहम हिस्सा है।
यह सर्वविदित है कि इंसानों में, एक सिंगल फास्टिंग इंटरवल (जैसे कि रातभर) से इंसुलिन और ग्लूकोज़ मेटाबॉलिक बायो मार्कर्स की सांद्रता घट सकती है।
इंटरमिटेंट फास्टिंग ऐसा ही एक तरीका है, जिसमें निर्धारित समयावधि (आमतौर से 16 घंटे उपवास और 8 घंटे खाना-पीना) पर खाने-पीने की पद्धति ने हाल के वर्षों में काफी लोकप्रियता हासिल की है। इस विधि का पालन करने से वज़न घटाने में काफी मदद मिलती है, साथ ही इंफ्लेमेशन भी घटता है और लंबे समय के लिए अन्य कई स्वास्थ्य लाभ भी मिलते हैं।
आमतौर पर इंटरमिटेंट फास्टिंग के तहत्, सप्ताह में एक या दो बार 24 घंटे तक उपवास (अलग-अलग आस्थाओं के हिसाब से) और बाकी दिन भोजन किया जाता है। इसे पीरियॉडिक प्रोलॉन्ग्ड फास्टिंग (PF) या इंटरमिटेंट कैलोरी रेस्ट्रिक्शन (ICR), टाइम रेस्ट्रिक्टेड फीडिंग (TRF) कहते हैं।
जैसे कि सिर्फ 8 घंटे के लिए खाना और बाकी के 16 घंटे उपवास, तथा ऑल्टरनेट-डे फास्टिंग (ADF)। ज्यादातर एडीएफ प्रोग्रामों में ऑल्टरनेटिंग फीस्ट और फास्ट डे (≤25% ऊर्जा आवश्यकता के हिसाब से) शामिल होता है। उपवास के दिन नो कैलोरी इन्टेक जैसी कुछ शर्तों का पालन किया जाता है।
उपवास के परिणामस्वरूप शरीर चार चरणों से गुजरता है: फेड स्टेट या पोस्टप्रेंडियल स्टेट, जिसमें गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट भरा हुआ रहता है और ईंधन का प्रमुख स्रोत ग्लूकोज़ होता है। तथा बॉडी फैट स्टोरेज की प्रक्रिया सक्रिय होती है और करीब 4 घंटे जारी रहती है।
इसके बाद, अर्ली फास्टेड स्टेट या पोस्ट एब्सॉर्प्टिव स्टेट आती है और करीब 4 घंटे चलती है। भोजन करने के कुछ घंटों के बाद शुरू होती है तथा 12 से 18 घंटे जारी रहती है। इसमें ग्लूकाजेन स्रावित होता है और वसा की स्टोरेज को रोकता है।
ऐसे में शरीर अपने कामकाज के लिए ईंधन की आवश्यकता पूरी करने के मकसद से लीवर में स्टोर वसा का इस्तेमाल करता है और फास्टेड स्टेट में धीरे-धीरे अन्य ईंधन स्रोतों जैसे कि वसा, लैक्टेट और एलानाइन आदि के आरक्षित भंडार की ओर बढ़ता है। जब लगभग 12 घंटे से 36 घंटे के निरंतर उपवास के उपरांत लीवर ग्लूकोज़ का आरक्षित भंडार कम होता है, तो शरीर स्टारवेशन स्टेट में पहुंच जाता है।
यहां सिर्फ अन्य आरक्षित स्रोत ही ईंधन के तौर पर इस्तेमाल होते हैं, और यह प्रेफरेंशियल लिपिड सिंथेसिस और फैट स्टोरेज से फ्री फैटी एसिड के रूप में वसा के रूपांतरण की प्रक्रिया है जिसमें फैटी एसिड डिराइव्ड केटोन्स शरीर के अंगों को ऊर्जा प्रदान करते हैं।
अधिकांश ह्यूमैन इंटरमिटेंट फास्टिंग अध्ययनों के नतीजों में न्यूनतम वेट लॉस तथा मैटाबोलिक बायोमार्कर्स में मामूली सुधार देखा गया है। हालांकि नतीजों में अंतर हो सकता है। कुछ एनीमल मॉडल्स से यह भी सामने आया है कि इंटरमिटेंट फास्टिंग से ऑक्सीडेटिव स्ट्रैस कम होता है। कॉग्निशन में सुधार होता है और एजिंग की प्रक्रिया भी धीमी पड़ती है।
इसके अलावा, इंटरमिटेंट फास्टिंग के परिणाम एंटी-इंफ्लेमेट्री होते हैं। इससे ऑटोफैगी को बढ़ावा मिलता है और गट माइक्रो बायोम को भी लाभ पहुंचता है। लाभ और नुकसान के अनुपात मॉडल, इंटरमिटेंट फास्टिंग प्रोटोकॉल, शुरू करते समय उम्र तथा अवधि पर निर्भर करते हैं।
उपवास के दौरान, हमारे शरीर में कोशिकाओं और परमाणुओं के स्तर पर बहुत से परिवर्तन होते हैं। शरीर हार्मोन स्तर को समायोजित करता है ताकि शरीर में स्टोर वसा उपलब्ध हो सके। कोशिकाएं मरम्मत की प्रक्रिया भी शुरू करती हैं और जींस की अभिव्यक्तियों में भी बदलाव लाती हैं। हार्मोन ग्रोथ तेजी से होती है और यह 5 गुना तक बढ़ सकता है।
यह वसा कम करने और मांसपेशियों की बढ़त के लिए फायदेमंद होता है। इंसुलिन सेंसटिविटी में सुधार होता है और इंसुलिन लैवल तेजी से गिरता है। इंसुलिन लैवल घटने से शरीर में स्टोर वसा आसानी से एक्सेसबिल होता है।
उपवास से कोशिकाएं मरम्मत की प्रक्रिया शुरू कर देती हैं। इसमें ऑटोफैथी भी शामिल है, जिसमें कोशिकाएं अपने भीतर जमा पुरानी और बेकार पड़ी प्रोटीनों को पचाती हैं या हटाकर बाहर कर देती हैं।
उम्र बढ़ाने वाली तथा रोगों से बचाव करने वाली जींस की कार्यप्रणालियों में भी बदलाव होते हैं। ये बदलाव हार्मोन के स्तर पर और कोशिकाओं की कार्यप्रणालियों में होते हैं तथा जीन अभिव्यक्ति से इंटरमिटेंट फास्टिंग के स्वास्थ्य संबंधी लाभ मिलते हैं।
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