एक उम्र के बाद शरीर में कई बदलाव आने लगते है। कभी कमर में दर्द, तो कभी पीठ में ऐंठन। इसके अलावा सीढ़िया चढ़ना और देर तक चलना भी कभी कभार मुश्किल लगने लगता है। ऐसे में अधिकतर महिलाओं को 40 के बाद करने की सलाह दी जाती है। मगर वज़न उठाने की इस प्रक्रिया को लेकर लोगों के मन में कई तरह के सवाल उठने लगते हैं। जहां कुछ में चोटिल होने का डर बैठ जाता है, तो पुरूषों के ही समान बॉडी के मसकुलिन यानि मर्दाना दिखने से घबराने लगती हैं। जानते हैं इन धारणाओं के पीछे क्या है सच्चाई और वेट ट्रेनिंग के दौरान रखें किन बातों का ख्याल (weight training effect on body)।
वजन उठाने को लेकर बहुत से मिथ्स फैले हुए हैं। सबसे आम है वेट ट्रेनिंग से मसक्यूलिन और भारी दिखने का जोखिम। हांलाकि ये सच नहीं है, जब कि हर दिन वेट ट्रेनिंग करने और वेटलिफ्टिंग से मसल्स की मज़बूती बढ़ने लगती है। इस बारे में फिटनेस एक्सपर्ट मुकुल नागपॉल बताते हैं कि महिलाओं को वेट ट्रेनिंग से पहले इस बात को समझना होगा कि शरीर की क्षमता के अनुसार ही व्यक्ति को अलग वेट दिया जाता है। एक्सपर्ट के अनुसार फिटनेस लक्ष्यों तक पहुँचने और उन्हें पूरा करने के लिए वेट ट्रेनिंग (weight training effect on body) एक प्रभावी तरीका है।
जहां योग और कार्डियो करने से शरीर में ब्लड का सर्कुलेशन बढ़ने लगता है और थकान व आलस्य से राहत मिलती है। वहीं वेट ट्रेनिंग से बोन डेंसिटी में सुधार आने लगता है और मसल्स मास बढ़ने लगता है। शरीर को एक्टिव रखने के लिए पुशअप्स, पुलअप्स और चिनअप्स किए जाते है।
सिंगापुर फिजिकल एक्टिविटी गाइडलाइन्स के अनुसार महिलाओं के शरीर में मांसपेशियों को बनाने वाले हार्मोन टेस्टोस्टेरोन का केवल एक अंश ही बनता है। ऐसे में उनका शरीर मसक्यूलिन नहीं दिखता है। दरअसल, महिला बॉडीबिल्डर की तरह दिखने के लिए कई सालों तक खास ट्रेनिंग और डाइट दी जाती हैं। महिलाओं को सप्ताह में 2 या उससे ज़्यादा दिन मध्यम या हाई इंटैसिटी मांसपेशियों को मज़बूत करने वाली गतिविधियाँ करनी चाहिए। सभी मसल्स ग्रुप शामिल होने से शरीर को मज़बूती मिलने लगती है।
फिटनेस एक्सपर्ट शिखा सिंह बताती हैं कि वेट ट्रेनिंग से वेटलॉस में मदद मिलती है और हड्डियों की मज़बूती बढ़ने लगती है। आमातैर पर 10 साल की उम्र से इसे शुरू किया जा सकता है और 80 साल की उम्र तक इसे किया जा सकता है। इससे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य उचित बना रहता है। इससे बॉडी के पोश्चर में सुधार होता है और अतिरिक्त फैट से मुक्ति मिल जाती है। इससे शरीर दिनभर एक्टिव और हेल्दी रहता है।
वेट को बॉडी वेट और फिटनेस लेवल के अनुसार चुना जाता है। एक्सपर्ट की देखरेख में ही वेट ट्रेनिंग करने से बॉडी मूवमेंट उचित बनी रहती है और पोश्चर में बेहतर परिवर्तन आने लगता है। शुरूआत लाइट वेट से करें। इससे जल्दी थकान होने से बचा जा सकता है। वज़न को शरीर की क्षमता के अनुसार ही उठाएं और रखें।
किसी भी तरह के नुकसान से शरीर को बचाने के लिए सही फॉर्म को चुनना ज़रूरी है। इससे चोटिल होने का जोखिम कम होने लगता है। इसके लिए पीठ को सीधा रखने, कोर की मांसपेशियों का इस्तेमाल करने और आगे की ओर झुकते समय शरीर का संतुलन बनाए रखने का प्रयास करें। वजन उठाते या व्यायाम करते समय लापरवाही से अनचाही चोट लग सकती है। वेट ट्रेनिंग से मांसपेशियों की ताकत में ज़्यादा वृद्धि होती है।
शुरुआत में शरीर के संतुलन को बनाए रखना बेहद ज़रूरी है। ऐसे में वजन की मात्रा को धीमी गति से बढ़ाने का प्रयास करें। जब आप वज़न को उठाने में कंफर्टएबल महसूस करने लगते हैं, तो उस वक्त वेट को बढ़ाया जा सकता है। इससे मसल्स की मज़बूती को भी बढ़ावा मिलने लगता है।
ताकत बढ़ाने और मसल्स की मज़बूती के लिए वेट ट्रेनिंग प्रभावी उपाय है। हांलाकि कार्डियो, बॉडीवेट मूवमेंट और डायनेमिक स्ट्रेचिंग जैसे अन्य व्यायामों को शामिल करने से वेटलॉस के अलावा शरीर को और भी कई अन्य फायदे मिलने लगते है।
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