कूल्हे में दर्द की तीव्रता तेज से हल्की हो सकती है। यह आपकी एक्टिव एज में आपको सबसे ज्यादा प्रभावित कर सकता है। जबकि मेनोपॉज के बाद भी कई महिलाएं इस तरह के दर्द का सामना करती हैं। कूल्हे के दर्द के संभावित कारणों के बारे में जानना सही निदान और प्रभावी उपचार के लिए सबसे जरूरी है। इस आलेख में कूल्हे का दर्द होने के कुछ आम कारणों (Hip pain causes) के बारे में बताया गया है और इससे बचाव के सुरक्षात्मक (Tips to avoid hip pain) उपायों के बारे में जानकारी दी गई है।
कूल्हे में होने वाले दर्द का सबसे आम कारण होता है कूल्हे में लगने वाली चोट। कूल्हे के जोड़ की बॉल व सॉकेट जैसी बनावट की वजह से इसमें कई प्रकार की टूट-फूट, मोच और फ्रैक्चर होने का खतरा रहता है। कूल्हे में चोट लगने के सबसे आम कारणों में शामिल हैं:
हिप लेब्रम, कूल्हे के सॉकेट के किनारे के आस-पास कार्टिलेज का एक गोला होता है, जिससे स्थिरता और कुशनिंग मिलती है। कूल्हे का दर्द होने के सबसे आम कारणों में लैब्रल टूट-फूट शामिल होती है। यह समस्या अक्सर ही बार-बार मूवमेंट होने से होती है, जोकि समय के साथ लैब्रम पर दबाव डालता है।
इसके लक्षणों में शामिल है कूल्हे के जोड़ में तेज जकड़न या लॉकिंग का एहसास होना। इसका उपचार समस्या की गंभीरता पर निर्भर करता है, लेकिन ज्यादातर आराम, फिजिकल थैरेपी और कई बार सर्जरी भी शामिल होती है।
कूल्हे के जोड़ के आस-पास के मसल्स पर दबाव पड़ने और घिसने का खतरा रहता है, खासकर खिलाड़ियों के साथ ऐसा होने की संभावना अधिक होती है। इलियोस्पा मांसपेशी और कमर की मांसपेशियां, सामान्य तौर पर ज्यादा चोटिल होती हैं। इसके लक्षणों में दर्द शामिल होता है, जोकि किसी प्रकार की गतिविधि करने पर बढ़ जाता है और चोटिल हिस्से की सूजन बढ़ जाती है।
मांसपेशियों में लगने वाली ज्यादातर चोटें आराम करने, बर्फ की सिकाई, दबाव और उठाव से ठीक हो सकती है। ज्यादातर खिंचाव की स्थिति में फिजिकल थैरेपी की जरूरत पड़ सकती है।
ऐसी कई समस्याएं हैं जोकि कूल्हे की परेशानी के साथ उत्पन्न होती हैं। ऑटोइम्युन तथा जोड़ों के रोगों से होने वाली सूजन समय के साथ अक्सर कूल्हे वाले हिस्से तक फैल जाती है।
ऑस्टियोआर्थराइटिस और रुमेटॉयड आर्थराइटिस दो ऐसी आर्थरिटिक समस्याएं हैं जोकि अक्सर कूल्हे के जोड़ को प्रभावित करती है। दशकों के इस्तेमाल से जोड़ों के घिसने-क्षतिग्रस्त होने से ऑस्टियोआर्थराइटिस की समस्या पैदा होती है। दोनों की वजह से जोड़ों की कार्यप्रणाली प्रभावित होने लगती है और धीरे-धीरे कूल्हे का दर्द बिगड़ता जाता है।
समस्या बढ़ने पर सूजनरोधी दवाएं, फिजिकल थैरेपी, ब्रेसेस और कई बार कूल्हे के रिप्लेसमेंट की भी जरूरत पड़ सकती है।
एवैस्कुलर नेक्रोसिस (एवीएन) में हड्डी के टिश्यू मृत होने लगते हैं। यह कूल्हे की हड्डी के फीमोरल सिरे के रक्तसंचार को बाधित करता है। हड्डी के टिश्यू मरने से हड्डियों का ढांचा कमजोर होने लगता है, जिससे वे क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। यदि एवीएन का उपचार ना किया जाए तो रोगियों को कई महीनों बाद कूल्हे में असहनीय दर्द महसूस होता है।
वजन बढ़ने से होने वाली समस्याओं से सतर्क रहने के लिए
बीएमआई चेक करेंस्टेरॉयड्स के हाई डोज, शराब का अत्यधिक सेवन और कुछ खास तरह के रोग एवीएन का कारण बन सकते हैं। यदि समय से पहले इसका पता चल जाए तो कूल्हे को संरक्षित रखने की सर्जरी की जा सकती है, जैसे कोर डिकम्प्रेशन।
कूल्हे और कमर का दर्द अक्सर साथ-साथ चलता है, क्योंकि साइटिका की नस कमर के जरिए कूल्हे वाले हिस्से से होकर गुजरती है। इस नस में असहजता होने या फिर रीढ़ के पास के हिस्से की शिथिलता से कूल्हे का दर्द होता है।
आमतौर पर साइटिका नस कमर वाले हिस्से में दबती है और उसमें सूजन होती है। ऐसा अक्सर हर्निएडेट लम्बर डिस्क या स्पाइनल स्टेनोसिस की वजह से होता है। यह दर्द नस के जरिए, जांघ के निचले हिस्से और कूल्हे वाले हिस्से में पहुंच जाता है। साइटिका के उपचार में फिजिकल थैरेपी, दवाओं या फिर संभावित स्पाइन सर्जरी के माध्यम से दबे हुए नस से आराम दिलाना लक्ष्य होता है।
एसआई जोड़, रीढ़ के सैक्रम को कूल्हे की हड्डियों से जोड़ता है। इन जोड़ों में गतिशीलता या स्थिरता से जुड़ी परेशानियों की वजह से सैक्रोइलिएटिक इन्फ्लेमेशन और कूल्हे/कमर का दर्द होता है। एसआई संयुक्त रोग के उपचारों में मैन्युअल थैरेपी तकनीक, सूजन-रोधी दवाएं और स्थिरता प्रदान करने वाले व्यायाम शामिल हैं।
मांसपेशियों, जोड़ों और हड्डियों में सामान्य तौर पर होने वाली सूजन की कुछ समस्याओं की वजह से भी कूल्हे में दर्द हो सकता है। उन समस्याओं के बारे में नीचे बताया गया है।
बर्साए हड्डियों और टिशूज के बीच तरल पदार्थ से भरी थैलियां होती हैं जोकि जोड़ों को सहजता से हिलाने-डुलाने में मदद करती है। कूल्हे में कुछ बुर्से होते हैं, जोकि ज्यादा इस्तेमाल या फिर चोट लगने की वजह से असहज हो सकते हैं जिससे दर्द और गतिशीलता के सीमित होने की समस्या हो जाती है। इसके उपचार में आराम, एनएसएआईडी जैसी आईब्रूफेन शामिल होता है और कई बार स्टेरॉयड का इंजेक्शन लगाने की भी जरूरत पड़ती है।
कूल्हे के टेंडन्स भी मांसपेशियों की तरह ही क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और उनमें सूजन आ जाती है। सूजन होने वाली सामान्य जगहें हैं हिप फ्लेक्सर, हिप एडिक्टर और इलियोटिबियल बैंड (आईटी बैंड) टिशूज। सूजन-रोधी दवाएं, स्ट्रेचिंग, गतिविधि में बदलाव और सामान्य फिजिकल थैरेपी से टेंडोनाइटिस का उपचार करने में मदद मिलती है।
अक्सर, ऑस्टियोपोरोसिस से पीड़ित बुजुर्गों या फिर युवाओं में गंभीर रूप से गिरने/दुर्घटना की वजह से ज्यादातर कूल्हे के फ्रैक्चर होने की समस्या होती है। फीमोरल नेक और इंटरट्रोकेन्टेरिक हिप फ्रैक्चर की वजह से अचानक ही कूल्हे/कमर में दर्द और वजन ना उठा पाने की समस्या होती है। आमतौर पर फ्रैक्चर के प्रकार के आधार पर प्लेट के साथ सर्जरी, स्क्रू या हिप रिप्लेसमेंट की जाती है।
कूल्हे के दर्द के लिए कुछ और भी संभावित कारण होते हैं, जो इस प्रकार हैं:
ऑस्टियोपोरोसिस : कूल्हे तथा पूरे अस्थि-पंजर की हड्डियों का घनत्व घटने से समय के साथ फ्रैक्चर होने का खतरा रहता है। बिसफ़ॉस्फ़ोनेट्स, कैल्शियम/विटामिन डी की खुराक और गिरने से बचाव के साथ उपचार का लक्ष्य भविष्य में होने वाले फ्रैक्चर से बचाव करना है।
कूल्हे के अलाइनमेंट से जुड़ी समस्याएं : फेमोरोएसिटेबुलर इंपिंगमेंट (एफएआई) और हिप डिसप्लेसिया, संरचना से जुड़ी दो ऐसी समस्याएं हैं जोकि समय से पहले टूट-फूट और कूल्हे के दर्द का कारण बनते हैं। ब्रेसेस लगाने, गतिविधियों में बदलाव और रीअलानइमेंट ऑस्टियोटॉमी से अलाइनमेंट से जुड़ी समस्याओं का उपचार करने में मदद मिलती है।
कूल्हे के दर्द से बचाव के कुछ उपाय और जीवनशैली में बदलाव करने से कूल्हे के जोड़ पर बेवजह का दबाव कम होता है। उन उपायों में शामिल हैं :
कम दबाव देने वाले, कूल्हे की स्ट्रेचिंग वाले व्यायाम करें जैसे स्वीमिंग, साइकिल चलाना और स्ट्रेंथ ट्रेनिंग। इससे मांसपेशी/हड्डी की सेहत और जोड़ों की गतिशीलता बनी रहती है और चोट लगने का खतरा कम हो जाता है। हमेशा ही पूरी स्ट्रेचिंग और वॉर्म-अप/कूल डाउन का अभ्यास करें।
कुशन वाले, अच्छे जूते वजन को समान रूप से वितरित करते हैं और चलने-फिरने या किसी प्रकार की गतिविधि करने पर ये टॉर्क को कम करते हैं। एथलिटिक जूतों को नियमित रूप से बदलते रहें, क्योंकि इनमें समय के साथ शॉक को झेलने की क्षमता कम हो जाती है।
पर्याप्त और अच्छी नींद लेने से टिश्यू के ठीक होने में मदद मिलती है और मेटाबॉलिक रूप से शरीर रीचार्ज होता है। सही तरीके से सोने के लिए मध्यम रूप से सख्त मैट्रेस और आरामदायक तकिए का इस्तेमाल करें।
ज्यादा वजन होने से भार उठाने वाले जोड़ों पर बार-बार दबाव पड़ता है। कुछ किलोग्राम वजन कम कर लेने से भी रोजमर्रा के कामों के साथ कूल्हे के जोड़ पर काफी हद तक दबाव कम हो जाता है।
रीढ़ की सामान्य अवस्था बनाए रखते हुए अच्छी तरह बैठने और खड़े होने से असमान रूप से भार और मांसपेशियों का असंतलुन कम हो जाता है। इससे लम्बर स्पाइन की सुरक्षा होती है और उससे संबंधित कूल्हे के दर्द से बचाव होता है।
बर्फ की सिकाई से जोड़ों की सूजन कम होती है, वहीं गरम सेंक करने से रक्तसंचार बेहतर होता है, जिससे ठीक होने की प्रक्रिया तेज हो जाती है। ऐसी चीज का इस्तेमाल करें जिससे लक्षणों में सबसे ज्यादा आराम मिले। एक बार में प्रभावित हिस्से पर 10-15 मिनट के लिए आइस पैक या हीटिंग पैड बांध दें। यदि दोबारा लगाने की जरूरत पड़े तो इसे 10 मिनट पहले हटा लें।
सख्त हिप फ्लेक्सर, हैमस्ट्रिंग और आईटी बैंड टिशूज की हल्की स्ट्रेचिंग के साथ हल्का-फुलका कार्डियो, व्यायाम के लिए न्यूरोमस्कुलर आधार तैयार करता है। इससे कार्यप्रणाली बेहतर होती है और सूजन की वजह से लगने वाली चोट का खतरा कम हो जाता है। इसके बाद कूलिंग डाउन से रिकवरी में मदद मिलती है।
याद रखें :
कूल्हे का दर्द इंट्राआर्टिकुलर, पेरीआर्टिकुलर और उससे जुड़े कारणों की वजह से होता है। विस्तृत रूप से रोग के इतिहास का पता लगाकर और शारीरिक स्थिति के साथ चिकित्सकीय सहायता लेना सही निदान के लिए चरण निर्धारित करता है। इसके बाद कूल्हे के दर्द की सही वजह का पता लगाकर उसके आधार पर उपचार की योजना बनाई जा सकती है।
निराशानजक होते हुए भी कई मामलों में कूल्हे के दर्द में आक्रामक विकल्पों से पहले जीवनशैली में थोड़े बदलाव, दवाएं, थैरेपी की जाती हैं और जरूरत पड़ने पर कम चीरे वाली सर्जरी का विकल्प चुना जाता है।
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