क्या मोटापा किडनी कैंसर का भी कारण बन सकता है? आइए चेक करते हैं
मोटापा लाइफस्टाइल के कारण होने वाली प्रमुख बीमारियों में से एक है। इससे दुनिया की बड़ी आबादी प्रभावित है। इसमें व्यक्ति में फैट का अनहेल्दी डिस्ट्रीब्यूशन होता है। इससे मानव शरीर के दूसरे अंग और हड्डियां भी प्रभावित होती हैं। कई रिसर्च बताते हैं कि मोटापा कई स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकता है। इसमें टाइप 2 डायबिटीज और असामान्य कोलेस्ट्रॉल लेवल शामिल है। इनके अलावा, मोटापा हाई ब्लड प्रेशर के जोखिम को बढ़ाता है, जो हृदय रोग और स्ट्रोक के लिए अतिरिक्त जोखिम कारक हैं।
पर क्या ये किडनी कैंसर (Obesity cause kidney cancer) का भी कारण बन सकता है? इस बारे में बात कर रहे हैं डॉ. पार्थ कर्मकार। डॉ. पार्थ फोर्टिस अस्पताल, आनंदपुर कोलकाता में सलाहकार नेफ्रोलॉजी हैं।
पहले समझिए मोटापा क्या है
25 से अधिक के बॉडी मास इंडेक्स (BMI) को अधिक वजन माना जाता है और 30 से अधिक को मोटापे के रूप में गिना जाता है। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बीएमआई को 23 से अधिक वजन के रूप में और 27.5 से ऊपर के लोगों को एशियाई आबादी के लिए मोटापे के रूप में परिभाषित किया है।
कुल मिलाकर, एशियाई लोगों में मोटापे की व्यापकता मोटापे के लिए 23.3 प्रतिशत थी। इसमें 40 प्रतिशत लोग अधिक वजन वाले थे। इसलिए यह ध्यान रखना आवश्यक है कि पश्चिमी आबादी की तुलना में भारतीयों के लिए कम बॉडी मास इंडेक्स की सलाह दी जाती है।
मोटापा कैसे बढ़ाता है कैंसर का खतरा?
किडनी कैंसर एक ऐसी स्थिति है, जो तब होती है जब अंग में कोशिकाओं की असामान्य वृद्धि होती है। जहां किडनी कैंसर के कई जोखिम कारक हैं, वहीं धूम्रपान के बाद मोटापा बीमारी का दूसरा सबसे बड़ा कारण है।
वाइट एडिपोज टिश्यू मानव शरीर में फैट का प्रमुख प्रकार है। यह त्वचा के नीचे, आंतरिक अंगों के आसपास और हड्डियों की सेंट्रल केविटी में पाया जा सकता है। साथ ही शरीर के विभिन्न हिस्सों की यह कुशनिंग भी कर सकता है। इसका मतलब यह है कि जब किसी व्यक्ति के शरीर में बहुत अधिक फैट होता है, तो यह इंसुलिन और इंसुलिन की वृद्धि करने वाले कारक 1 (IGF-1) को भी बढ़ाता है, जो कुछ प्रकार के कैंसर के विकास में मदद करने के लिए जाने जाने वाले हार्मोन हैं।
इनके अलावा, ओबेसिटी पुरानी इन्फ्लेमेशन का कारण बनता है। इससे किडनी में कैंसर का खतरा बढ़ जाता है, क्योंकि फैट सेल्स उन प्रक्रियाओं में हस्तक्षेप कर सकती हैं, जो किडनी में कैंसर से संबंधित कोशिकाओं के विकास को नियंत्रित करती हैं।
किडनी कैंसर को कैसे रोकें?
रीनल सेल कार्सिनोमा या आरसीसी यूरिनरी सिस्टम से जुड़े ट्यूमर में सबसे घातक कैंसर माना जाता है। दुनिया भर में लगभग चार प्रतिशत लोग आरसीसी से पीड़ित हैं। यह मुख्य रूप से 60-70 वर्ष की आयु के बीच के पुरुष रोगियों को प्रभावित करता है।अब तो युवा भी इस स्थिति से प्रभावित हो रहे हैं।
इसके अलावा, यह समझना आवश्यक है कि लगभग 30 प्रतिशत रोगी जो पार्सियल या रेडिकल नेफरेक्टोमी से गुजरते हैं, उनके जीवनकाल में मेटास्टेस कभी न कभी विकसित होंगे। साथ ही, फस्र्ट डायग्नोसिस में आरसीसी के लगभग 20-25 प्रतिशत आरसीसी पेशेंट मेटास्टेटिक रोग से प्रभावित होते हैं।
किडनी कैंसर के लिए कुछ उपचार विधियों में सर्जरी, टारगेटेड थेरेपी, इम्यूनोथेरेपी या इन उपचारों का संयोजन शामिल है। उपचार प्रक्रिया का मुख्य लक्ष्य ट्यूमर वाले हिस्से या पूरी किडनी को हटाना होता है। वर्तमान में, किडनी के कैंसर के इलाज पर कई रिसर्च हो रहे हैं। vascular endothelial growth फैक्टर (वीईजीएफ; बेवाकिज़ुमैब) और इसके रिसेप्टर को लक्षित करने वाले नए उपचार विधियों पर बहुत सारे शोध किए जा रहे हैं। आने वाले वर्षों में, एक उन्नत उपचार विकल्प के साथ, एक लंबा और स्वस्थ जीवन जीना संभव हो सकता है, भले ही किसी व्यक्ति को बाद के चरणों में आरसीसी का निदान किया गया हो।
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