प्रेगनेंसी के दौरान महिलाओं को अत्यधिक वेटगेन से लेकर बेचैनी और मूड स्विंग तक कई परेशानियों से दो चार होना पड़ता है। दरअसल, शरीर में तेज़ी से बढ़ने वाला हार्मोनल बदलाव महिलाओं को कई प्रकार से प्रभावित करता है। ऐसे में शरीर को तरोताज़ा और एक्टिव रखने के लिए एक्सरसाइज एक बेहतरीन विकल्प है। दिनभर में कुछ वक्त वॉकिंग, स्वीमिंग और योगाभ्यास के लिए निकालने से प्रेगनेंसी से लेकर डिलीवरी तक शरीर हेल्दी बना रहता है। जानते हैं गर्भावस्था के दौरान एक्सरसाइज़ करने के फायदे (exercising during pregnancy)।
इस बारे में फिटनेस एक्सपर्ट पूजा मलिक बताती हैं कि प्रेगनेंसी के दौरान किसी भी प्रकार की एक्सरसाइज़ को अंडर गाइडेंस किया जाना चाहिए। एक्सरसाइज को तिमाही के अुनसार विभाजित किया जाता है। आमतौर पर महिलाओं को नॉर्मल वॉकिंग और ब्रीदिंग एक्सरसाइज़ (benefits of breathing exercise) करने की सलाह दी जाती है। इससे शरीर में ब्लोटिंग, कब्ज और तेज़ी से बढ़ने वाले वेटगेन से बचा जा सकता है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डायबिटीज़, डाइजेस्टिव एंड किडनी डिज़ीज़ के अनुसार वे महिलाएं जो प्रेगनेंसी के दौरान एक्टिव नहीं रहती है। उन्हें अत्यधिक वेटगेन (causes of excessive weight gain) का सामना करना पड़ता है। इसके चलते हाई ब्लड प्रेशर, जेस्टेशनल डायबिटीज़, मोटापा और सी सेक्शन डिलीवरी का खतरा बढ़ जाता है।
सप्ताह में दो बार 20 से 30 मिनट हल्की एक्सरसाइज़ करने से पेल्विक फ्लोर मसल्स रिलैक्स हो जाते हैं, जिससे बॉवल मूवमेंट नियमित रहता है और डाइजेशन बूस्ट होने लगता है। कुछ देर वॉकिंग और प्रीनेटन योगा फायदेमंद साबित होता है। एक्सरसाइज की मदद से शरीर में मौजूद टॉक्सिक पदार्थों को डिटॉक्स करने के अलावा मेटाबॉलिज्म बूस्ट होने लगता है।
बार- बार भूख लगने और बॉडी को एक्टिव न रखने से वेटगेन का सामना करना पड़ता है। कैलोरी स्टोरेज़ से तेज़ी से वज़न बढ़ जाता है। ऐसे में हेल्दी और स्मॉल पोर्शन डाइट के अलावा शारीरिक गतिविधि भी आवश्यक है। इसके लिए शरीर को एक्टिव रखें, जिससे शरीर में एनर्जी का लेवल बना रहता है। साथ ही शरीर फिज़िकली और मेंटनी एक्टिव रहता है। इससे मेटाबॉलिज्म बूस्ट होता है, जिससे अत्यधिक वेटगेन से बचा जा सकता है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार नियमित व्यायाम ये जेस्टेशनल डायबिटीज़ से बचा जा सकता है। प्रेगनेंसी में वेटगेन के चलते डायबिटीज की खतरा बढ़ने लगता है। इससे शरीर इंसुलिन का स्तर असंतुलित होने लगता है, जिसके चलते गर्भकालीन मधुमेह का खतरा बढ़ जाता है। नियमित वॉक और ब्रीदिंग एक्सरसाइज़ करने से इंसुलिन संवेदनशीलता में सुधार आने लगता है।
सीडीसी की रिपोर्ट के अनुसार हर 8 में से 1 महिला पोस्टपार्टम डिप्रेशन का शिकार होती है। दरअसल, शरीर में अनियंत्रित हार्मोन की मात्रा मेंटल हेल्थ को प्रभावित करती है। पोस्टपार्टम डिप्रेशन से बचने के लिए मेडिटेशन की मदद लें। इसके अलावा एक्सपर्ट की गाइडेंस लेकर अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार एक्सरसाइज़ करे। इससे डिलीवरी के बाद स्ट्रेस और मूड स्विंग को कम किया जा सकता है।
अधिकतर महिलाओं को प्रेगनेंसी के दौरान कमर और टांगों में दर्द का सामना करना पड़ता है। दरअसल बढ़ते वज़न के चलते उसका असर टांगों पर दिखने लगता है, जिससे पैरों में सूजन की भी समस्या रहती है। ऐसे में मांसपेशियों में बढ़ने वाली ऐंठन को दूर करने के लिए स्त्री रोग विशेषज्ञ की सलाह से एक्सरसाइज़ को चुनें और शरीर की गतिशीलता को बनाए रखें।