हम में से ज्यादातर लोग दिन का एक लंबा समय बैठकर बिताते हैं। कुछ लोगों की जॉब ऐसी हो सकती है, जिसमें उन्हें खड़ा रहना पड़ता हो। परंतु अधिकतर लोग 9 से 5 की डेस्क जॉब में हैं, जहां बैठकर काम करना होता है। वहीं होम मेकर महिलाएं भी घर के काम-काज के बाद बैठकर किताबें पढ़ती हैं, या मोबाइल इस्तेमाल करती हैं। यदि आपको ये कहां जाए कि बैठने की सही मुद्रा आपकी सेहत को फायदे प्रदान कर सकती है। जी हां, ये बिल्कुल सच है, स्क्वाट एक्सरसाइज के बारे में तो आप सभी ने सुना होगा परंतु स्क्वाट मुद्रा में बैठना भी आपके लिए फायदेमंद हो सकता है।
पहले के लोग स्क्वाट मुद्रा में बैठकर काम करते थे, वहीं महिलाएं भी घर का काम करते वक्त, जैसे कि खाना बनाते हुए या पोछा लगाते वक्त स्क्वाट मुद्रा में ही बैठती थी। स्क्वाट मुद्रा एक प्रकार का नेचुरल रेस्टिंग पोजीशन है (Squats Sitting Benefits), इस मुद्रा में बैठकर व्यक्ति को आराम की अनुभूति होती है। आपको पूरे दिन में कम से कम 30 मिनट तक, इस मुद्रा में जरूर बैठना चाहिए। इस प्रकार आपकी सेहत को कई फायदे प्राप्त करने में मदद मिल सकती है (Squats Sitting Benefits)।
स्क्वाट मुद्रा को उकड़ूं मुद्रा भी कहा जाता है। यह वे मुद्रा है, जिसमें लोग इंडियन बाथरूम में बैठकर मल त्याग करते हैं। स्क्वाट मुद्रा (Squats Sitting Benefits) मैं बैठने के लिए आपको अपने पैरों को घुटने से मोड़कर, जमीन की सलाह पर बैठना होता है। इस स्थिति में आपके घुटने आपकी छाती को छू रहे होते हैं। इस मुद्रा में बैठे होने से आपके बाहरी पेट पर दबाव बनता है, जिससे मल त्याग में आसानी होती है, इसलिए लोग इस मुद्रा में मल त्याग करते थे। वहीं इस नेचुरल रेस्टिंग पोजीशन के कई अन्य फायदे भी हैं, तो आइए जानते हैं इसके बारे में अधिक विस्तार से।
डीप स्क्वाट में जाने और उससे बाहर आने पर, कोर की मांसपेशियां रीढ़ और पेल्विक को स्थिर करने की कोशिश करती हैं। कोर को मजबूत करने से रीढ़ की हड्डी के उचित संरेखण को बनाए रखने में मदद मिलती है, जिससे एक बेहतर और सीधा पोस्चर मेंटेन करना आसान हो जाता है।
जैसा कि पहले बताया गया है, डीप स्क्वाट करने के लिए हिप मोबिलिटी की आवश्यकता होती है, और इस स्थिति में आराम करने से कूल्हों में लचीलापन लाने में और इनकी गति की सीमा को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है। एक बेहतर हिप मोबिलिटी शरीर में जकड़न को कम कर सकती है, और बेहतर मुद्रा में योगदान देती है।
डीप स्क्वाट पोजीशन में बैठकर आराम करने से रीढ़ की हड्डी को विघटित करने में मदद मिल सकती है। यह इंटरवर्टेब्रल डिस्क पर दबाव को कम कर सकता है और लूपबेहतर रीढ़ की हड्डी के संरेखण को बढ़ावा देता है।
डीप स्क्वाट मुद्रा में बैठने से हमारे पेट की मांसपेशियों को काम करने और हमारे पेट के अंदर दबाव बढ़ाने से पाचन में मदद मिल सकती है। यह सूजन को कम करता है और भोजन को आसानी से आगे बढ़ने में मदद करता है। इसके अलावा, स्क्वाट मुद्रा करने से हमारे पेल्विक के आसपास की मांसपेशियां मजबूत होती हैं।
जब वेस्टर्न टॉयलेट का चलन इतना ज्यादा नहीं था, तब सभी इंडियन टॉयलेट में मल त्याग के लिए स्क्वाट मुद्रा में बैठते थे। इस मुद्रा में बैठकर मल त्याग करने से पाचन क्रिया स्टिम्युलेट होती है और पेट की मांसपेशियों पर जोड़ पड़ता है, जिसकी वजह से मल को आसानी से बाहर निकालने में मदद मिलती है। यदि किसी को कब्ज की समस्या रहती है, तो उन्हें रोजाना इस मुद्रा में बैठना चाहिए। साथ ही मुमकिन हो तो इंडियन टॉयलेट का इस्तेमाल करना चाहिए।
डीप स्क्वाट में, टखने फ्लेक्सन से गुजरते हैं, जो टखने की गतिशीलता में सुधार करता है। टखने की पर्याप्त गतिशीलता दैनिक गतिविधियों के दौरान बेहतर वजन वितरण और स्थिरता को बनाए रखने में मदद करती है, जिससे पोस्चर में सुधार होता है।
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