अक्सर सर्दी के चलते लोगों की त्वचा पर रूखापन और रैशेज की समस्या बढ़ जाती है। ऐसे में लोग क्रीम और घरेलू नुस्खों का इस्तेमाल करने लगते है। मगर मौसमी प्रभाव के अलावा दिनों दिन बढ़ता तनाव भी रैशेज का कारण साबित हो सकता है। दरअसल, तनाव की स्थिति इस समस्या को ट्रिगर कर सकता है। फिर वो चाहे एक्यूट स्ट्रेस हो या क्रॉनिक। किसी कारण स्ट्रेस का बढ़ता स्तर जैसे गट हेल्थ को नुकसान पहुंचाता है। ठीक उसी प्रकार से वो स्किन को भी नुकसान पहुंचाने लगता है। सबसे पहले जानते है तनाव स्किन को कैसे प्रभावित करता है और इससे राहत पाने के उपाय भी (stress rash)।
मनोचिकित्सक डॉ आरती आनंद बताती हैं कि तनाव और एंग्ज़ाइटी के कारण चेहरे, बाजू या शरीर के किसी भी अंग पर दाने और लालिमा बढ़ने लगती है। मस्तिष्क पर बढ़ने वाले भावनात्मक या मनोवैज्ञानिक तनाव से एलर्जी या संक्रमण का जोखिम बढ़ जाता है। ये तनाव एक्यूट या क्रॉनिक दोनों प्रकार का हो सकता है। इस समस्या को दूर करने के लिए मेडिटेशन, थेरेपी और अपने लिए समय निकालने के अलावा स्किन का ख्याल रखना भी आवश्यक है।
सऊदी मेडिकल जर्नल की रिसर्च के अनुसार अत्यधिक तनावग्रस्त रहने वाले मेडिकल छात्रों के स्कैल्प की त्वचा ऑयली होने लगती है और दानों की समस्या बनी रहती है। वहीं दूसरी ओर कुछ को त्वचा की शुष्कता का सामना भी करना पड़ता है। इसके चलते त्वचा पर खुजली, रैशेज और लालिमा का सामना करना पड़ता है।
तनावग्रस्त होने पर शरीर में हार्मोन रिलीज़ होते है, जो स्किन इंफ्लामेशन को बढ़ाते हैं। हिस्टामाइन एक ऐसा कंपाउड है जो आमतौर पर चोट और एलर्जी के कारण बढ़ने लगता है (stress rash)। मगर तनाव से भी ये ट्रिगर हो सकता है। जर्नल डर्मेटोलॉजी प्रैक्टिकल एंड कॉन्सेप्चुअल में प्रकाशित 2021 के रिसर्च के अनुसार जब आप तनावग्रस्त होते हैं, तो शरीर में हाइपोथैलेमस पिट्यूटरी एड्रेनल यानि एचपीए सक्रिय हो जाता है।
इससे शरीर में स्ट्रेस हार्मोन कोर्टिसोल का स्तर बढ़ने लगता है और मास्ट सेल्स रिलीज़ होते हैं अमेरिकन एकेडमी ऑफ फैमिली फिजिशियन के अनुसार मास्ट सेल्स खुजली वाली, इची स्किन (stress rash) का कारण बनती है। दरअसल, इनसे शरीर में हिस्टामाइन कंपाउड की मात्रा बढ़ने लगती हैं। अमेरिकन इस्टीट्यूट ऑफ की रिपोर्ट के अनुसार अधिकतर एंग्ज़ाइटी रैशेज 24 घंटों के भीतर गायब हो जाते हैं।
ये थेरेपी मनोविश्लेषण सिद्धांत पर आधारित है। इसके ज़रिए मनोचिकित्सक किसी व्यक्ति के पास्ट एक्सपीरिएंस को जानकर उसके वर्तमान में बढ़ने वाले तनाव, चिंता और झुंझलसहट की जानकारी एकत्रित कर पाता है। इसे टॉक थेरेपी भी कहा जाता है। इससे सोचने समझने की क्षमता में सुधार आने लगता है और व्यक्ति एंग्ज़ाइटी से बाहर आने लगता है।
नियमित रूप से मनोचिकित्सक के संपर्क में रहकर और दवाएं लेने से शरीर में हिस्टामाइन का स्तर कम होने लगता है, जिससे तनाव से बचा जा सकता है। इसके अलावा मूड बूस्टिंग प्रतिक्रियाओं में हिस्सा लेने से इस समस्या से राहत मिल जाती है। त्वचा पर बनने वाले चकत्तों को अवॉइड करने की जगह उसका इलाज अवश्य करवाएं
दिन की शुरूआत मेडिटेशन से करके दिमाग को शांत रखने में मदद मिलती है। इससे मानसिक स्वास्थ्य उचित बना रहता है और मस्तिष्क में एकत्रित होने वाले विचारों से बचा जा सकता है। दिमाग को शांत रखने के लिए 15 से 20 मिनट मेडिटेशन करें और माइंड को रिलैक्स रखने का प्रयास करें।
देर तक पानी न पीना निर्जलीकरण का कारण साबित होता है। इससे स्किन की डलनेस और शुष्कता दोनों बढ़ने लगते है। ऐसे में त्वचा की स्मूदनेस को बरकरार रखने के लिए भरपूर मात्रा में पानी पीएं, जिससे स्किन सेल्स बूस्ट होते है और रैशेज का जोखिम कम हो जाता है।
सूजन और खुजली से राहत पाने के लिए प्रभावित स्थान पर कोल्ड कंप्रैस अप्लाई करें। इससे स्किन इंफ्लामेशन से राहत मिलती है। कोल्ड कंप्रैस के अलावा तौलिए में बर्फ को लपेटकर रैशेज़ पर लगाने से भी फायदा मिलता है। इससे स्किन पर बढ़ने वाली रेडनेस भी कम होने लगती है।
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