आज की दुनिया में, हममें से कई लोग किसी न किसी प्रकार की स्क्रीन के सामने घंटों बिताते हैं, चाहे वह फोन, टैबलेट या लैपटॉप कंप्यूटर हो। इनकी स्क्रीन से ब्लू लाइट और हानिकारक किरणें निकलती हैं, जो स्क्रीन टाइम के समय आपकी त्वचा पर प्रभाव डाल सकती है। ये ब्लू लाइट समय से पहले बूढ़ा होने से लेकर, लंबे समय तक चलने वाले हाइपरपिग्मेंटेशन तक का कारण बन सकती है।
बदलते समय की जरूरतों में अब गैजेट्स का इस्तेमाल जरूरी हो गया है। इनमें ज्यादातर वे नौकरीपेशा लोग भी शामिल हैं, जो आठ-दस घंटे या उससे भी ज्यादा समय तक स्क्रीन के सामने रहते हैं। ऐसे कई स्किन केयर उत्पाद हैं, जो हानिकारक ब्लू लाइट की किरणों को रोकने और उनके कुछ प्रभावों को कम करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। लेकिन क्या ये सभी उत्पाद सही हैं? क्या वे सही में ये आपकी मदद करते हैं? चलिए जानते हैं।
ब्लू लाइट विजिबल लाइट स्पेक्ट्रम पर एक रंग है जो कंप्यूटर स्क्रीन, टीवी, फोन और यहां तक कि नियमित सूरज के प्रकाश के हिस्से के रूप में उत्सर्जित होती है। ब्लू लाइट को पहले आंखों की रोशनी और स्लीप साइकिल को खराब करने के लिए जिम्मेदार माना जाता था। लेकिन अब इसे डीएनए क्षति और कोशिका और ऊतक मृत्यु सहित त्वचा परिवर्तनों के लिए भी जिम्मेदार माना जाता है।
क्लिनिक डर्माटेक की डर्मेटोलॉजिस्ट कल्पना सौलंकी बताती है कि ब्लू लाइट के प्रभाव उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को तेज कर सकते हैं और फाइन लाइन, झुर्रियों और त्वचा के मलिनकिरण जैसी चीजों का कारण बन सकते है।
हाल में हिए एक अध्ययन में बताया गया है कि आधुनिक जीवन में हम सभी को दिन में पर्याप्त प्राकृतिक रोशनी नहीं मिल रही है और इसके विपरीत हम उच्च स्तर की कृत्रिम रोशनी के अत्यधिक संपर्क में आ रहे हैं। अध्ययन में कहा गया है कि हमारी त्वचा “ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस” के उच्च स्तर के रूप में उस जोखिम का खामियाजा भुगत रही है और ऑक्सीडेटिव तनाव और उम्र बढ़ने के बीच का संबंध हम सभी जानते है।
इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की रोशनी और मानव त्वचा कोशिकाओं के एक दूसरे के संपर्क में आने से प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन प्रजातियों एपोप्टोसिस और नेक्रोसिस का निर्माण हो सकता है। ब्लू लाइट यूवी प्रकाश की तुलना में त्वचा में अधिक गहराई तक प्रवेश करती है और रंग-उत्पादक कोशिकाओं की गतिविधि को उत्तेजित करती है। इससे अन्य चीजों के अलावा आपकी त्वचा में हाइपरपिग्मेंटेशन हो सकता है। यह मेलास्मा का कारण भी बन सकता है।
कल्पना सोलंकी बताती है कि ब्लू लाइट खराब नहीं होती है क्योंकि मुँहासे और त्वचा कैंसर के इलाज में फोटोडायनामिक थेरेपी के लिए ब्लू लाइट का उपयोग किया जाता है। चिंता का विषय नीली रोशनी के अधिक निरंतर, बार-बार संपर्क में आना है।
ब्लू लाइट स्किन केयर कई रूप में बाजार में उपलब्ध है – स्प्रे, क्रीम और जैल से लेकर सनस्क्रीन तक, जिनका उपयोग ब्लू लाइट को रोकने और आपकी त्वचा को फिर से जीवंत करने के लिए किया जा सकता है। ऐसी नाइट क्रीम भी हैं जो ब्लू लाइट के कारण आने वाली फाइन लाइन और झुर्रियों को दूर करने का दावा करती हैं।
ब्लू लाइट वाली सनस्क्रीन, ब्लू लाइट के साथ-साथ यूवी किरणों को भी रोकने का काम करती है। नियमित सनस्क्रीन ब्लू लाइट को उतने अच्छे से कवर नहीं करती जितना कि ब्लू लाइट को कवर करने वाली सनस्क्रीन करती है। एसपीएफ 30 और उससे अधिक वाली टिंटेड सनस्क्रीन त्वचा को ब्लू लाइट के साथ-साथ यूवीए और यूवीबी से भी बचा सकती है।
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