जानिए आयुर्वेदिक दोषों को संतुलित कर आप कैसे पा सकती हैं स्‍वस्‍थ और दमकती त्‍वचा

हेल्‍दी स्किन के लिए आपको अपने शरीर, आहार और पोषण पर भी ध्‍यान देना होगा।
वात, पित और कफ आपकी स्किन को भी प्रभावित करता है। चित्र: शटरस्‍टॉक
वात, पित और कफ आपकी स्किन को भी प्रभावित करता है। चित्र: शटरस्‍टॉक
Updated On: 17 Oct 2023, 03:27 pm IST

आयुर्वेद जीवन का विज्ञान है, जिसमें स्वस्थ जीवन और बीमारियों के उपचार के बारे में बहुत सी जानकारियां हैं। वास्तव में, जब त्वचा की देखभाल की बात आती है, तो बहुत से लोग आयुर्वेदिक उपचार पर भरोसा करते हैं। ये उपचार त्वचा की समस्याओं को ठीक करता है।

आयुर्वेद के अनुसार क्‍या हैं दोष?

दोष तीन तत्वों से मिलकर बना है, जिन्हें आप इस रूप में जान सकते हैं:

वात (वायु और अंतरिक्ष) कफ (जल और पृथ्वी) पित्त (अग्नि और पृथ्वी)

ये तत्व आपके शरीर में मौजूद होते हैं और किसी व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, स्वस्थ त्वचा को बनाए रखने के लिए, दोषों को संतुलित करने की आवश्यकता होती है। कहा जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति में अपना एक तत्व होता है। जो उसके शारीरिक सौष्‍ठव को परिभाषित करता है।

आयुर्वेद के अनुसार इन दोषों से कैसे कर सकते हैं अपनी त्वचा की देखभाल

1. वात दोष

वात दो तत्वों से बना है- वायु और अंतरिक्ष। इन तत्वों को त्वचा के रंग पर हल्का, सूखा और खुरदरा प्रभाव होने के रूप में वर्णित किया गया है। इससे हल्के-भूरे रंग की रंजकता यानी टैनिंग हो सकती है। वात त्वचा का प्रकार महीन रेखाओं और झुर्रियों से ग्रस्त होता है, जिसका अर्थ है कि वात दोष के असंतुलन के कारण उम्र बढ़ने और त्वचा में निर्जलीकरण के शुरुआती लक्षण प्रकट होते हैं।

आयुर्वेद शरीर को हर तरह के बदलाव के लिए तैयार रखता है। चित्र: शटरस्‍टॉक
आयुर्वेद शरीर को हर तरह के बदलाव के लिए तैयार रखता है। चित्र: शटरस्‍टॉक

शुष्क और ठंडे मौसम, कच्चा भोजन और तनाव वात दोष को बढ़ाते हैं। इसलिए आयुर्वेद में त्वचा के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए भाप लेने और सही मॉइस्चराइजर लगाने का सुझाव दिया गया है।

2. कफ दोष

आम तौर पर ये दोष उन लोगों को होता, जिनमें पृथ्वी और पानी के गुण होते हैं, जो सोरायसिस जैसे विकारों से ग्रस्त होते हैं। एक ऐसी स्थिति जिसमें त्वचा की कोशिकाएं बनती हैं और त्वचा में खुजली वाले सूखे पैच बनते हैं। इस प्रकार की त्वचा सुस्त, तैलीय होती है और इसमें बढ़े हुए छिद्र होते हैं।

आयुर्वेद के अनुसार, सही मॉइस्चराइजर, जीवनशैली में सही आहार और गहरी सफाई से इस त्वचा विकार को ठीक किया जा सकता है।

3. पित्त दोष

पित्त में अग्नि तत्व का प्रभुत्व है, जो शक्ति, तीव्रता और चिड़चिड़ापन का प्रतीक है। पित्त दोष के असंतुलन से लाली, जलन दर्द हो सकता है और कभी-कभी बुखार भी हो सकता है। इस प्रकार की त्वचा एक प्रकार के एक्जिमा से ग्रस्त होती है। जो सूजन, जिल्द की सूजन और अन्य प्रकार की सूजन संबंधी त्वचा रोग है।

पित्‍त दोष में स्किन पर एलर्जी जैसे लक्षण दिख सकते हैं। चित्र : शटरस्टॉक
पित्‍त दोष में स्किन पर एलर्जी जैसे लक्षण दिख सकते हैं। चित्र : शटरस्टॉक

क्योंकि इस तरह की त्वचा संवेदनशील होती है, इसलिए संतुलित रहने के लिए इसे धूप से सुरक्षा की आवश्यकता होती है। एलोवेरा, गुलाब और जैस्मिन जैसी ठंडी और हीलिंग जड़ी-बूटियाँ इस प्रकार की त्वचा को शांत और पोषित करने में मदद करती हैं और दोष को ठीक करती हैं।

तो लेडीज, इन दोषों को दूर करने का समय आ गया है, आज से ही एक स्वस्थ त्वचा पाने के लिए तैयार हो जाएं।

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टीम हेल्‍थ शॉट्स
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