एस्ट्रोजन भी बढ़ा सकता है मुंहासे और त्वचा संबंधी समस्याएं, जानिए इसे कैसे ठीक करना है

एस्ट्रोजन के स्तर में होने वाले बदलाव एक्ने, पिंपल और स्किन ड्राइनेस जैसी त्वचा संबंधी समस्याओं का कारण बन सकते हैं। अब सवाल यह है कि एस्ट्रोजन और त्वचा का आपस में क्या संबंध है, और यह त्वचा संबंधित समस्याओं को किस प्रकार बढ़ावा दे सकती है।
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किस तरह त्वचा को प्रभावित कर सकता है एस्ट्रोजन। चित्र : एडॉबीस्टॉक
अंजलि कुमारी Updated: 16 Jan 2024, 12:37 pm IST
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आज के समय में हार्मोनल असंतुलन एक बेहद आम समस्या बन चुका है। बहुत सी महिलाएं इससे परेशान रहने लगी हैं। असंतुलित खानपान, शारीरिक स्थिरता सहित कुछ शारीरिक और मानसिक स्थितियां भी हैं जो इसका कारण बन रही हैं। इस स्थिति में तमाम हार्मोंस असंतुलित हो जाते है, वहीं इनमें से एक है “एस्ट्रोजन”। एस्ट्रोजन एक रिप्रोडक्टिव हार्मोन है, जिसमें उतार-चढ़ाव आने से रिप्रोडक्टिव हेल्थ पर नकारात्मक असर पड़ता है। इतना ही नहीं इससे मूड रेगुलेशन, बोन फंक्शन, ब्रेस्ट डेवलपमेंट भी प्रभावित होता है। वहीं एस्ट्रोजन इंबैलेंस का असर त्वचा पर भी नजर आता है।

एस्ट्रोजन के स्तर में होने वाले बदलाव एक्ने, पिंपल और स्किन ड्राइनेस जैसी त्वचा संबंधी समस्याओं का कारण बन सकते हैं। अब सवाल यह है कि एस्ट्रोजन और त्वचा का आपस में क्या संबंध है, और यह त्वचा संबंधित समस्याओं को किस प्रकार बढ़ावा दे सकती है (how estrogen cause acne)। इस विषय पर अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए हेल्थ शॉट्स ने जुनोएस्क क्लीनिक की कॉस्मेटोलॉजिस्ट किरण भट्ट से बात की। तो चलिए एक्सपर्ट से जानते हैं, इस विषय पर अधिक विस्तार से।

जानें किस तरह त्वचा को प्रभावित कर सकता है एस्ट्रोजन (how estrogen cause acne)

एस्ट्रोजन के असंतुलित होने से शरीर में कई सारे बदलाव नजर आते हैं, खासकर यह त्वचा को बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है। एस्ट्रोजन के गिरते या बढ़ते स्तर से प्रीमेच्योर एजिंग की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। यह एक ऐसा हार्मोन है, जो एजिंग के निशान को समय से पहले आने से रोकता है, इसके अलावा कोलेजन के स्तर को मेंटेन रखने में मदद करता है। असंतुलित एस्ट्रोजन (estrogen imbalance) कोलेजन की कमी का कारण बन सकता है।

खासकर यह पोस्ट मेनोपॉजल महिलाओं में देखने को मिलता है। कोलेजन एक आवश्यक प्रोटीन है जो त्वचा में इलास्टिक को मेंटेन रखता है। साथ ही साथ त्वचा को यंग और ग्लोइंग बनता है। इसकी कमी स्किन रिंकल्स, फाइल लाइन तथा एक्ने का कारण बन सकती है।

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एस्ट्रोजन लेवल को कुछ उपाय अपनाकर संतुलित रखा जा सकता है | चित्र : शटरस्टॉक

शरीर में टेस्टोस्टेरोन के साइड इफेक्ट को बैलेंस करने में मदद करता है एस्ट्रोजन। ऐसे में एस्ट्रोजन का गिरता स्तर टेस्टोस्टेरोन के स्तर को बैलेंस नहीं कर पाता, जिसकी वजह से एक्ने ब्रेकआउट आदि जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

मेंस्ट्रुअल साइकिल के दौरान प्रोजेस्टरॉन, टेस्टोस्टेरोन और एस्ट्रोजन तीनों प्रभावित होते हैं, जिसकी वजह से आमतौर पर इस दौरान महिलाओं को एक्ने का सामना करना पड़ता है। यदि आप एक स्वस्थ एवं संतुलित त्वचा की चाहत रखती हैं, तो एस्ट्रोजन के स्तर को नियमित रखना बेहद महत्वपूर्ण है।

एस्ट्रोजन का असंतुलित स्तर होने पर नजर आते हैं ये लक्षण

  1. इरेगुलर और मिस्ड पीरियड्
  2. स्तन में दर्द और कसाव
  3. रात को पसीना आना
  4. सेक्सुअल डिजायर की कमी
  5. मूड स्विंग्स और पीएमएस
  6. सेक्स के दौरान अधिक दर्द का अनुभव
  7. हॉट फ्लैशेज
  8. असामान्य वेट गेन
  9. अत्यधिक थकान

इस स्थिति में त्वचा का रखें विशेष ध्यान

यदि आपके शरीर में हार्मोंस का स्तर असंतुलित हो चुका है और आपको इसकी वजह से त्वचा संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, तो इस स्थिति में त्वचा की उचित देखभाल करने का प्रयास करें। स्वस्थ एवं संतुलित पोष्टिक भोजन करें। इस दौरान त्वचा अधिक संवेदनशील होती है, इसलिए अपने सभी पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स पर विशेष ध्यान दें।

ऐसा कोई भी टॉक्सिक केमिकल युक्त प्रोडक्ट इस्तेमाल न करें, जिससे स्थिति और ज्यादा खराब हो जाए। साथ ही इस दौरान कोई भी नया प्रोडक्ट ट्राई न करें, अन्यथा त्वचा पर और ज्यादा एक्ने निकाल सकते हैं।

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मृत कोशिकाओं को चेहरे पर मसाज करके आसानी से रिमूव किया जा सकता है। चित्र- अडोबी स्टॉक

कोई भी ऐसा क्रीम या मॉइश्चराइजर इस्तेमाल करें, जिसे आप हमेशा से इस्तेमाल करती चली आ रही हैं। इसके अलावा दिन में दो बार त्वचा को हल्के हाथों से रब करते हुए क्लीन करें। साथ ही साथ पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं और डिटॉक्स ड्रिंक तैयार करें। जिसमें अदरक की चाय, नींबू पानी आदि को शामिल कर सकती हैं। यह सभी चीजें आपकी त्वचा को हाइड्रेटेड रहने में मदद करेंगी और आपकी परेशानी को भी बढ़ने से रोकेंगी।

अब जानें एस्ट्रोजन के स्तर को बैलेंस रखने के टिप्स

1. आंतो की सेहत का रखें ध्यान

आंतो में कई हेल्दी बैक्टीरिया मौजूद होते हैं, जो विभिन्न प्रकार के मेटाबॉलिक को प्रोड्यूस करते हैं। यह आपके हार्मोन को नकारात्मक तथा सकारात्मक दोनों ही रूप में प्रभावित कर सकते हैं। अस्थाई पाचन क्रिया मेटाबॉलिज्म को प्रभावित करती है, जिसकी वजह से वेट गेन होता है। साथ ही साथ यह इन्फ्लेमेशन और इन्सुलिन रेजिस्टेंस को भी बढ़ावा देती है, जो वेट गेन के लिए जिम्मेदार दो अन्य फैक्टर्स हैं।

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साथ ही साथ यह सभी फैक्टर रिप्रोडक्टिव हार्मोन एस्ट्रोजन को प्रभावित करते हैं और इन्हें असंतुलित कर सकते हैं। इसलिए फाइबर युक्त खाद्य पदार्थों को डाइट में शामिल करें, साथ ही हल्का और पौष्टिक भोजन करने की आदत बनाएं। इससे पाचन क्रिया के लिए खाद्य पदार्थों को पचना आसान हो जाता है और यह स्वस्थ रहते हैं।

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2. शुगर इंटेक को सीमित रखें

अपनी डाइट में सीमित मात्रा में चीनी लें। संतुलित मात्रा में चीनी के सेवन से डायबिटीज मोटापा जैसे तमाम स्थितियों का खतरा कम हो जाता है, जो हार्मोनल असंतुलन के सामान्य कारण होते हैं। वहीं डायबिटीज और ओबेसिटी एक्सट्रोजन के स्तर में भी उतार-चढ़ाव का कारण बन सकते है। जिसकी वजह से परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

इसलिए एडेड शुगर युक्त किसी भी प्रकार के खाद्य पदार्थों से परहेज करें। खासकर बाजार में मिलने वाले पैकेज्ड पदार्थों से दूरी बनाए रखें। साथ ही यदि आर्टिफिशियल स्वीटनर्स का इस्तेमाल करती हैं, तो उनकी जगह प्राकृतिक शुगर का चयन करें, जिससे कि आपको परेशानियों को अवॉइड करने में मदद मिलेगी।

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स्ट्रोजन इंबैलेंस का असर त्वचा पर भी नजर आता है। चित्र:एडॉबीस्टॉक

3. वेट मैनेजमेंट पर ध्यान दें

बढ़ता वजन शरीर में एस्ट्रोजन के स्तर को असंतुलित कर सकता है। इस स्थिति में महिलाओं के रिप्रोडक्टिव हेल्थ तथा त्वचा पर बेहद नकारात्मक असर पड़ता है। इसलिए वेट मैनेजमेंट पर ध्यान देना बेहद महत्वपूर्ण है। यदि आपका वजन अधिक है, तो उसे कम करने के लिए मिल स्किप करना शुरू न कर दें, अन्यथा शरीर में पोषक तत्वों की कमी से भी हार्मोंस और संतुलित हो सकते हैं।

प्रॉपर डाइट चार्ट तैयार करें और यह सुनिश्चित करें कि आपकी डाइट में आपके शरीर को पर्याप्त पोषण मिल रहा हो। इस प्रकार आप अपने वेट को बैलेंस रखते हुए हार्मोंस को भी संतुलित रख सकती हैं।

4. शारीरिक गतिविधियों में भाग ले

शारीरिक स्थिरता अमूमन हार्मोनल इंबैलेंस का कारण बनती है। इसलिए नियमित रूप से शरीर को आवश्यकता अनुसार सक्रिय रखना जरूरी है। जरूरी नहीं कि आप भारी एक्सरसाइज कर रही हों, या फिर योग सेशन में भाग ले रही हों, घर का कामकाज करना, टहलना, घर में बैठे-बैठे साधारण एक्सरसाइज और स्ट्रेचिंग करने से भी हार्मोंस को संतुलित रखने में मदद मिलती है।

एक्सरसाइज करने से इंसुलिन का स्तर संतुलित रहता है और इन्सुलिन सेंसटिविटी बढ़ती है। जिससे वेट मैनेजमेंट में मदद मिलती है। यदि आपका वजन संतुलित रहता है, तो आपके हार्मोंस भी संतुलित रहते हैं, साथ ही साथ अन्य शारीरिक समस्याएं भी आपको परेशान नहीं करती।

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इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी से जर्नलिज़्म ग्रेजुएट अंजलि फूड, ब्यूटी, हेल्थ और वेलनेस पर लगातार लिख रहीं हैं। ...और पढ़ें

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