पर्यावरण में प्रदूषण का प्रभाव तेज़ी से बढ़ रहा है। इससे न केवल चेहरे की त्वचा को नुकसान पहुंचता है बल्कि बालों की समसयाएं भी बढ़ने लगती है। इससे हेयरफॉल से लेकर रूखेपन तक कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। दरअसल, जहरीली हवा में घुले पॉल्यूटेंटस जड़ों को नुकसान पहुंचाकर हेयरफॉल का कारण साबित होते हैं। अगर आप भी एयर पॉल्यूशन के कारण बालों से जड़ी समस्याओं का शिकार हो रही है, तो जानें किन टिप्स की मदद से इस समस्या को नियंत्रित (how to protect hair from pollution) करने में मदद मिलती है।
न्यू जर्सी हेयर रिस्टोरेशन सेंटर की रिसर्च के अनुसार, प्रदूषण से एंड्रोजेनेटिक एलोपेसिया का जोखिम बढ़ जाता है, जो हेयरलॉस का कारण बनने लगता है। नैनो पार्टिकल्स के चलते बालों के टैक्सचर को नुकसान पहुंचता है। इसके अलावा पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन से बालों की जड़ें कमज़ोर हो जाती हैं।
इस बारे में डर्माटोलॉजिस्ट डॉ सोनाली कोहली बताती हैं कि प्रदूषित हवा के संपर्क में आने से हवा में घुली धातुओं और कण पदार्थ बालों को क्षतिग्रस्त करते हैं। हवा में घुले केमिकल्स बालों के शाफ्ट में प्रवेश करते हैं जिससे बाल रूखे और बेजान होने लगते हैं, जिससे बाल झड़ने लगते हैं। प्रदूषकों के कारण ऑक्सीडेटिव तनाव बढ़ जाता है। एसे में लंबे समय तक इनके संपर्क में रहने से बालों का रंग खराब हो सकता है और बाल पतले हो सकते हैं।
एनआईएच की रिपोर्ट के अनुसार एयर पॉल्यूटेंटस के संपर्क में आने से बालों के क्यूटिकल, कॉर्टेक्स और केराटिन को नुकसान का सामना करना पड़ता है, जिससे बाल रूखे होकर टूटने लगते हैं। प्रदूषक तत्व स्कैल्प पर मौजूद नेचुरल ऑयल को छीन सकते हैं, जिससे बाल कमजोर हो जाते हैं और बालों के स्वास्थ्य में समग्र गिरावट आती है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार पार्टिकुलेट मैटर यानि पीएम की चपेट में आने से स्कैल्प पर प्रोटीन की मात्रा कम होने लगती है। इससे बालों की ग्रोथ प्रभावित होती है और हेयरफॉल का सामना करना पड़ता है। दरअसल, बालों को मिलने वाले प्रोटीनों में बीटा कैटेनिन और साइक्लिन डी समेत कई तत्व मौजूद हैं। डर्माटोलॉजिस्ट डॉ सोनाली कोहली से जानते हैं कि एयर पॉल्यूटेंटस से बचने के लिए किन टिप्स कर मदद लें।
चिपचिपे हेयर सीरम, स्प्रे और ऑयल जैसे उत्पादों से हेयर स्टाइल करने से बचना चाहिए। दरअसल, पर्यावरण में मौजूद विषाक्त पदार्थ और वायु प्रदूषण मिलकर बालों में चिपकने लगते हैं, जिससे ऑक्सीडेटिव तनाव बढ़ने लगता है। इससे हेयरलॉस का सामना करना पड़ता है। ऐसे में उन हेयर स्टाइलिंग उत्पादों का चयन करना चाहिए, जो बालों के क्यूटिकल को सील कर सकें।
एयर क्वालिटी खराब होने से प्रदूषक तत्व तेज़ी से बालों पर प्रहार करते हैं। इसके अलावा धूप कि किरणों से भी हेयर डैमेज का खतरा बना रहता है। प्रदूषण और यूवी रेज़ का प्रभाव मिलकर बालों के झड़ने और पतले होने का कारण साबित होते है। नेशनल लाइब्रेरी आूफ मेडिसिन के अनुसार पर्यावरणीय तनाव बालों में प्रोटीन की कमी को बढ़ा देता है। इससे बालों के रंग में भी बदलाव नज़र आने लगता है। बालों को सुरक्षित बनाए रखने के लिए टोपी या हेड रैप की मदद लें।
हेयर केयर उत्पाद चुनने से पहले इस बात का ख्याल रखें कि वो पूरी तरह से सल्फेट, पैराबेन और अन्य हानिकारक रसायनों से मुक्त हों। सल्फेट और पैराबेन को पर्यावरण में बायोएक्यूमिलेट करने की उनकी क्षमता के कारण जल प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों में से एक माना जाता है। दरअसल, ये केमिकल्स हेयर केयर उत्पादों के माध्यम से भी शरीर में पहुँच सकते हैं। इसलिए, हेयर केयर उत्पादों को खरीदते समय उन पर सल्फेट मुक्त या पैराबेन मुक्त लेबल होना महत्वपूर्ण है।
बालों की मज़बूती को बढ़ाने के लिए एलोवेरा, हाइलूरोनिक एसिड और ग्लिसरीन जैसे हाइड्रेटिंग एजेंटस का इस्तेमाल फायदेमंद साबित होता हैं। इससे बालों पर बढ़ने वाला प्रदूषण का दुष्प्रभाव कम हो जाता है और बाल मज़बूत बने रहते है। साथ ही बालों का टैक्सचर उचित बना रहता है।
नेचुरल हेयर मास्क और शैम्पू की मदद से बालों को क्षतिग्रस्त होने से बचाया जा सकता है। सप्ताह में 2 से 3 बार हेयरवॉश करने से हेरूर क्लीजिंग में मदद मिलती है और इससे स्कैल्प का पीएच बना रहता है। साथ ही प्रदूषण का प्रभाव कम होने लगता है।
मौसम में बदलाव आने से प्यास की कमी बढ़ जाती है, जो डिहाइड्रेशन का कारण बनता है और बालों में ड्राइनेस बढ़ जाती है। ऐसे में भरपूर मात्रा में पानी का सेवन करने से शरीर में निर्जलीकरण की समस्या हल हो जाती है। साथ ही त्वचा और बालों में बढ़ने वाला रूखापन को कम किया जा सकता है।